सूरजमुखी - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

सूरज की ओर मुँह किए खिल रहे,
पीले-पीले सुंदर सूरजमुखी के फूल।

भोर की पहली किरण निकलते ही,
खिलखिला उठते सूरजमुखी के फूल।

शरद रातों में खड़े बिंदास होकर,
नई किरण की आस में सूरजमुखी के फूल।

सूरज निकलता बहुत दूर आसमान में,
धरती पर इंतज़ार में सूरजमुखी के फूल।

फ़ासलों के दरम्यान प्रेम गाढ़ा होता है,
हरपल टकटकी लगाए सूरजमुखी के फूल।

अपने प्रिय की  झलक पाने के लिए,
रोज़ संवरते हैं ये सूरजमुखी के फूल।

तिरछी नज़रे किए एक तरफ़ा प्यार में,
सूरज बिन हैं अधूरे सूरजमुखी के फूल।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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