ज़िंदगी तेरे रंग बड़े अजीब - कविता - विजय गोदारा गांधी

तुम्हारे ही दिल मे बैठा है वो
तुम जिसे ढूंढते मंदिर की पुजा,
मस्जिद की अजीरो में।

सियासत आने से पहले सब इंसान थे
इसी ने बांट दिया सबको
जात पात की लकीरो में।

इश्क़ किया तो लोगो ने नई उपाधि दे दी
आजकल गिनती होने लगी है
सूफ़ी फ़क़ीरों में।

अजीब बुरा हाल देखा इस कलयुग में
उम्रभर का प्यार टूटा दो गज की
जागीरो में।

रिश्ते-नाते प्रेम-विश्वास सब छलनी कर दिए
जाने कैसी आग है इन दौलत के
तीरो में।

सेठ-साहुकार, भ्रष्ट नेता-अधिकारी डकार गए मुल्क
ओर इनकी गिनती होती
महान वीरों में।

ए-ज़िंदगी तेरे भी रंग बड़े अजीब देखे
कुछ बैठे हैं घरों में, कुछ बचे है
बस तस्वीरों में।

विजय गोदारा गांधी - भादरा (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos