तुम सुनो रुको और ठहरो - कविता - आर एस आघात

तुम सुनो
रुको और ठहरो
और गौर से सुनो
मेरी एक बात
जो मुझे तुमसे कहनी है।

आपको आज मुझे सुनना तो पड़ेगा
बहुत दिन हो गए मुझे 
तुम्हारी बात सुनते - सुनते
अब कोई बहाना नहीं चलेगा।
क्यों नया राग अलापते हो।

कभी बेगारी काम पर
तो कभी जाति के नाम पर
बहुत सताया है मुझे
रोज़ नया बहाना बनाकर,
मुझे क्यों हरहाल सताते हो।

अब मेरी बारी है
तुमसे कहने की,
तुम्हे मेरी बात सुनने की
तुम्हें क्या हो गया है अब
जो मुझसे नज़रें चुराते हो।

अब क्यूँ भाग रहे हो,
मेरे अहसास से,
क्यों कंपकपा रहे हो,
मेरी बात तो सुनो
अब सुनने में क्यों चिड़चिड़ाते हो।

पता है आपको,
कितना शोषण किया है,
मेरा और मेरी अस्मत का,
तुम्हारी नेकदिल हुकूमत ने
और रियासतदार बनते हो।

अब मैंने कुछ सीख लिया है
बेगारी करना छोड़ दिया है
यही बात तुम को नहीं झिलती
मन में बहुत खटकती है,
इसीलिए तुम डरते हो।

ज़िल्लत भरी ज़िंदगी,
छोड़कर मैंने क़लम पकड़ ली
इज़्ज़त से जीवन जीने की,
सच्ची रफ़्तार पकड़ ली,
इसी बात से तुम चिढ़ते हो।

आर एस आघात - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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