अंधाधुंध आधुनिकता की
तुम वो बनावट रहने दो,
बहने दो जल को तुम जो
वो रूप धरा का रहने दो,
ताल तलैया नहर जो भैया
पावन नीर तो बहने दो,
अंधाधुंध आधुनिकता का
झूठा गाना रहने दो,
कुछ बची नदी जो जीवन है
उनको भी ज़िंदा रहने दो,
अंधाधुंध आधुनिकता मे
भी अपना जीवन रहने दो।
कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)