पौष मास स्वागत करूँ, सूर्य करे धनु त्याग।
मकर राशि पावन अतिथि, महापर्व अनुराग।।१।।
प्रथम साल त्यौहार है, मकर संक्रान्ति नाज़।
सदा चतुर्दश जनवरी, कभी पञ्चदश आज।।२।।
लोहड़ी या बिहू कहीं, है पोंगल त्यौहार।
कहीं तिला संक्रान्ति यह, दधि-चूड़ा आहार।।३।।
शस्य श्यामला खेत की, नयी फसल का स्वाद।
खुशियाँ फैलीं चहुँदिशा, मिटे वैर अवसाद।।४।।
विविध पतंगें गगन में, उड़ती कटती धाग।
दृश्य मनोहर चारुतम, बनते सब सहभाग।।५।।
कहीं सजा है भांगरा, कहीं जली है आग।
कृषकों के घर तिलकुटें, बिहू नृत्य अनुराग।६।।
चाहे कोई धर्म हो, मकर विविध हैं नाम।
रंग भरी पिचकारियाँ, भरे कृषक अभिराम।।७।।
मुकलित मंजर से भरा, तरु रसाल फलराज।
स्वागत वासन्तिक छटा, कोकिल गान समाज।।८।।
पापड़ खिचड़ी है बनी, चटनी दही अचार।
दे मधुरिम संदेश जग, मानव लोक उदार।।९।।
करे प्रगति चहुँदिक वतन, हो सबका कल्याण।
दुःख सुख मिल बाँटे सभी, हो रोग शोक त्राण।।१०।।
मूंगफली अर्पण किया, लोहड़ की इस आग।
सब पापों का नाश हो, बने राष्ट्र अनुराग।।११।।
कवि निकुंज शुभकामना, सुखी रहे सब लोग।
राष्ट्र भक्ति सह एकता, धर्म जाति फलयोग।।१२।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली