संदेश
मानसून आया - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
झाड़ी-झुरमुट-पेड़ हैं मानसून आया। लगी चाँदनी चंदन जैसे। होता है अभिनंदन जैसे॥ झोला भर भर है देखा परचून आया। मिट्टी के हैं खेल खिलौने। …
कविता और कवयित्री - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैंने पूछा– "तू इतनी उदास क्यूॅं है?" तो वह अपनी आँखें झुका ली। आप बीती कैसे बयाँ करती वो आँखों से अश्कों को ही छुपा ली। मैं…
मैं रोग हूँ कि दवा हूँ कि इश्क़ हूँ दुआ हूँ - ग़ज़ल - रोहित सैनी
अरकान: मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती: 1212 1122 1212 22 मैं रोग हूँ कि दवा हूँ कि इश्क़ हूँ दुआ हूँ मैं कौन हूँ जो भटकता हूँ…
दिल में मेरे कोई भूचाल सा ठहर गया - ग़ज़ल - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े तकती: 22 22 22 22 22 2 दिल में मेरे कोई, भूचाल-सा ठहर गया, बस रह गया वो याद में, ख़्याल-सा…
मैं चला मैं ढूँढ़ने - कविता - सुष्मिता पॉल
मैं चला मैं ढूँढ़ने, कभी अपनों में, कभी ग़ैरों में, कभी मंदिर में, कभी पहाड़ों में, असीम शांति की खोज में, भटकता रहा राहगीर मैं, दर-दर …
तेरे बाद कुछ भी ना था - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब'
अरकान: मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ेइलुन तक़ती: 2122 2122 2122 212 तेरे बाद कुछ भी ना था, दिल में फिर भी धड़कन रही, हर इक बात में तू…
घना धुँध - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जीवन गहराता जा रहा, एक घने धुँध से। मन व्याकुल है; जैसे पिंजरे में बंद कोई पक्षी हो। हृदय आहत है; अपने ही द्वारा किए गए कार्यों से। शर…
प्रकृति पीड़ा - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित'
होत रहेला धूप-छाँव चिरई। जनि करा करेजवा में घाव चिरई॥ ग़लती के पुतला हवे मनई। मत बढ़ावा घर से पाँव चिरई। जनि करा... घरवा में चिरई उछल क…
हूँ कुदाल मैं - गीत - उमेश यादव
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ। मेरे अन्दर बहुमुखी प्रतिभा, कृषकों का हथियार हूँ॥ लोहे की चपटी फलक में, लम्बा बेंट लगा हो…
समझो जीवन मुस्कान खिले - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
पूर्ण सकल मन आश विभव सुख, जब ख़ुशियों का अंबार खिले। हर उदास मुख महके राहत, समझो जीवन मुस्कान खिले। काश हृदय अभिलाषा झंकृत, पुरुषार्थ व…
सपनों की राह में संघर्ष - कविता - रूशदा नाज़
क्यूँ, क्या, कैसे कहाँ तक? इन सवालों में उलझा विद्यार्थी कल्पनाओं में ढूँढ़ता है यर्थाथ अपने सफ़र में भटकता हुआ, थकता हुआ, हारता हुआ किन…
जा रही हूँ छोड़ उपवन - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
जा रही हूँ छोड़ उपवन, फिर कभी न आऊँगी। लौटना असंभव मेरा अब, हूँ तिरस्कृत बार-बार। अब न मुझको बाँध सकेंगी, प्रिय! तुम्हारे अश्रुओं कि ज…
सोने के पिंजरे इन्हें रास न आते हैं - कविता - रजनी साहू 'सुधा'
तन्हाई के मौसम में पंछी राग सुनाते हैं, सन्नाटों की पीड़ा को स्वर में गुनगुनाते हैं। प्रीत निभाने के ये सब राज़ छुपाते हैं, बुलंदी के …
वो जो हँसता था मेरा दर्द छुपाने के लिए - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब'
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती: 2122 2122 2122 2122 वो जो हँसता था मेरा दर्द छुपाने के लिए आज तनहा है उसी ग़म को…
फिर फिर जीवन - कविता - रोहित सैनी
अगर कभी तुम्हें लगे अकेले ही पर्याप्त हो तुम अपने लिए जब लगे अकेले जीवन जिया जा सकता है, मुश्किल नहीं! तब अपनी जान का पूरा दम लगाकर फि…
मेरा वतन - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | पहलगाम हमले पर दोहे
पुकारता मेरा वतन, जागो भारत वीर। पहलगाम अरिघात का, बदला लो रणधीर॥ मिटा पाक नक्शा धरा, नाश करो आतंक। महाकाल बन घात कर, बने शत्रु फिर रं…
संघर्ष का सूर्योदय - कविता - सुशील शर्मा | मज़दूर दिवस पर कविता
धूप की पहली किरण, उजागर करती अनगिनत चेहरे, जो झुकते हैं धरती पर, उठाते हैं भार, बनाते हैं राहें। हाथों में खुरदरापन, धमनियों में बहता …
कौन जिलवा से तु अइलु गोरी - भोजपुरी गीत - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
हरी-हरी खेतवा में, देखे तोहे नज़रिया, हे गोरी, हमर दिलवा एक सवाल करेला, अरे, कौन जिलवा से तु अइलु गोरी, ई दिलवा के बेहाल करेला। प्यारी-…
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ, ख़ुद वैरागी हो जाऊँ। मोह-मृग की माया त्यागूँ, शून्य में लय हो जाऊँ॥ मन-वेदी पर दीप प्रज्वलित, शुद्ध प्राण क…
काम ऐसा हो कि तकरार न हो - ग़ज़ल - निर्मल श्रीवास्तव
काम ऐसा हो कि तकरार न हो जीत हो ना हो मगर हार न हो ज़िंदगी मायने क्या रखती है ज़िंदगी में मिला जो प्यार न हो हुस्न को हुस्न कहा जाता है …
गप्पों: बीसवाँ चित्र - कहानी - सुनिता पन्ना
आज सुबह-सुबह मैं सैर के लिए लेडीज पार्क गई। यह पार्क हमारे घर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर ही है। मेरा पिछले 15 सालों से ग्वालि…
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