हूँ कुदाल मैं - गीत - उमेश यादव

हूँ कुदाल मैं - गीत - उमेश यादव | Geet - Hoon Kudaal Main. कुदाल पर कविता। Hindi Poem on Hoe, Spade
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ।
मेरे अन्दर बहुमुखी प्रतिभा, कृषकों का हथियार हूँ॥

लोहे की चपटी फलक में, लम्बा बेंट लगा होता है।
लोहा लकड़ी के मिलने से, मेरा यह शरीर बनता है॥
कृषि कार्य करने को जन्मा, कृषकों का कुदार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥

अलग-अलग नाम रूपों से, जग में जाना जाता हूँ।
बोना और काटना दोनों ही, केवल मैं कर पाता हूँ॥
हर दुविधा में साथ खडा हूँ, मैं बहुत होशियार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥

गर छोटा सा काम कहीं है, तो मुझको आज़मालो।
तैयार नहीं हैं हल और बैल तो, कंधे मुझे उठालो॥
हल भी जहाँ पहुँच न पाता, वहाँ पहुँच तैयार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥

मिट्टी खोदो, गड्ढा भरलो, खर पतवार हटालो।
मेड़ लगालो खेतों में या, चाहो तो मेड़ मिटालो॥
वृक्षारोपण करना चाहो तो, न करता इनकार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥

आपस के झगड़े में तो मैं, सबसे पहले उठता हूँ।
तलवारों से ज़्यादा घातक, घाव शत्रु को देता हूँ॥
विजयी वही हाथों में जिसके मैं, पक्का पहरेदार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥

इंच-इंच कर खेत बढ़ाता, झगड़े सदा कराता हूँ।
चार इंच की ख़ातिर भी मैं, भाई से लड़वाता हूँ॥
खेत में झगड़े का दोषी मैं, निर्विवाद विकार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥

रक्षा करने तत्पर रहता, मुझे किसी से बैर नहीं।
अगर कहीं हो साँप बिच्छु, तो उसका भी ख़ैर नहीं॥
घास उगे हों, गटर हो गंदा, सफ़ाई को तैयार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥

दोष और गुण दोनों मुझमें, चाहे जो अपनालो।
चाहे अन्न उगालो मुझसे, या फिर रक्त बहालो॥
मैं तो तेरा दास सदा हूँ, करता तुमसे प्यार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औज़ार हूँ॥


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos