संदेश
छोड़ भतैरा जाएगी - गीत - महेश कुमार हरियाणवी
तोते की देख के चोंच, उठने लगा संकोच। कितना ही खा पाएगी? छोड़ भतैरा जाएगी॥ सौंप बाग़ की डोर उसे, कोस रहा था और किसे। मैं ख़ुद, ख़ुद से अं…
पक्षी की मन व्यथा - कविता - अनूप अंबर
तुम इंसानों को मुझ पर, बिल्कुल तरस ना आया है। मुझे बताओ मैंने किसको, दुख दर्द भला पहुँचाया है॥ मैं वृक्षों पर विचरण करता था, मीठे फल क…
संघर्ष - कविता - अनूप अंबर
तिनका-तिनका बीन-बीन कर, वो अपना नीड़ सजाता है । हवाओं का अभिमान तोड़ कर, वो लक्ष्य को अपने पाता है॥ ये मेहनत का आराधक है, आशाओं की लड़…
अररररे! ये क्या कर आए तुम - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ऊलुन मफ़ऊलु फ़ऊलुन फ़ा तक़ती : 122 221 122 2 अररररे! ये क्या कर आए तुम, उजाड़ कर धूप के साए तुम। इक अपना घर बनाने के वास्ते,…
बिन बुलाया मेहमान - कहानी - आशीष कुमार
वह आता है। रोज़ आता है। बिन बुलाए आता है। वह जो मेरा कुछ भी नहीं लगता पर मेरा बहुत कुछ है। उसे देखे बिना मैं नहीं रह सकता। वह यह बात जा…
हम हैं परिंदे - कविता - अर्चना कोहली
भले ही हम सब छोटे-से परिंदे कहलाते हैं, लेकिन संघर्ष-ताप से कभी नहीं घबराते हैं। नन्हे-नन्हे पंखों से क्षितिज को पार कर लेते, अन्न-पान…
बसेरा - कविता - नेहा श्रीवास्तव
बीत रहा था एक विहग सुषमय जीवन उड़ जाता था दूर गगन में स्वप्न सँजोए जीवन उसको लगता सुन्दर, सरस, मनोहर हरा भरा वन नील गगन और सुन्दर उपवन…
मुक्ति संघर्ष - कविता - आशीष कुमार
पिंजड़े में क़ैद पंछी, करुण चीत्कार कर रहा। ऊपर गगन विशाल है, वह बंद पिंजड़े में रह रहा। टीस है उसके दिल में, तिल-तिल कर है मर रहा। निर…
गौरैया के अंडे - कविता - अभिषेक मिश्रा
गौरैया के नीले अंडे इनमे छिपी हुई नन्ही से सी जान बड़े दिनों बाद शायद मुद्दतों बाद, उस चिड़िया ने सहेज का रखे थे ऊँचे अटारी पर इस उम्…
नीलकंठ - कविता - मोनी रानी
आसमान में हमनें उसे उड़ते देखा, आसमानी पंख और नीले कंठो वाला पक्षी बहुत हीं प्यारा। उड़कर वो हमेशा बिजली की तारों पर बैठे हमारे मन को, ख़…
चिड़िया की वेदना - गीत - भगवत पटेल
मेरी इक छत की मुँडेर से, बोले एक चिरैय्या, सुन भैय्या! सुन भैय्या! सुन भैय्या!! पानी नही बरसाता बादल, मैं प्यासी की प्यासी, भूखे प्यास…
पंखाचल - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
दबा चोंचभर मिटट्टी लाती, दीवारों में वह चिपकाती। बच्चों के आवास के लिए, एक पक्का घोंसला बनाती।। घूम-घूम कर घर-घर दिन भर, चुन-चुन कर …
गौरैया - कविता - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
मैं नन्ही छोटी गौरैया, बोलो तेरा क्या लेती थी। चुगती थी दाने दो चार, खुशियाँ तेरे घर भर देती थी। नन्हा सा इक मेरा घोंसला, वो भी तुझको …
परिंदे प्यार के - कविता - गणपत लाल उदय
ऐसे पकडो़ ना हमें कोई छल - कपट करके कोई। फैलाओ मत जाल तुम रखो ना पिंजरे में कैद तुम।। क्यों चलते हो चाल कोई उड़ने दो हमको शान वही…
अब पक्षियां नहीं आती - कविता - उमाशंकर मिश्र
उजड़े हुए चमन मे अब पक्षियां नहीं आती, झुलसे हुए झोपड़ी मै गाये नहीं आती। मैले आँचल से अब दूरगंध नहीं आती, गिरे हुए महल मे अब मोहब्बतें …