गौरैया के अंडे - कविता - अभिषेक मिश्रा

गौरैया के नीले अंडे 
इनमे छिपी हुई नन्ही से सी जान
बड़े दिनों बाद शायद मुद्दतों बाद,
उस चिड़िया ने सहेज का रखे थे ऊँचे
अटारी पर इस उम्मीद में की इस बार 
कोई समझौता नहीं करूँगी!

मैं इनको पंख देकर आसमान में 
उड़ाऊँगी! 
मनुष्यों के क्रूर
व्यवहार से दूर गगन के इस छोर से उस छोर तक...
यही सोचकर इनको पाल रही हूँ!
ठीक उसी दिन,
जब सृष्टि अपनी रची सारी व्यवस्थाओं को 
एक नया आकार देगी!
मनुष्य की मनुष्यता जागेगी तब
कोई कवि लिख रहा होगा अपनी
व्यथा...!
तब इन्हे बाहर लाऊँगी!
फिर मैं मुक्त हो जाऊँगी,
धो डालूँगी उन दुखों को
आँसुओं से जो समय ने दिए हैं!
फिर मिटेंगे सारे विषाद,
मिल जाएगा विस्तृत नभ में 
कोई एक स्थान!
जिसका न आदि होगा न अंत!!

अभिषेक मिश्रा - बहराइच (उत्तर प्रदेश)

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