हम हैं परिंदे - कविता - अर्चना कोहली

भले ही हम सब छोटे-से परिंदे कहलाते हैं,
लेकिन संघर्ष-ताप से कभी नहीं घबराते हैं।
नन्हे-नन्हे पंखों से क्षितिज को पार कर लेते,
अन्न-पानी खोज में दूर तलक भटकते रहते।।

पथ में जैसे तुम्हारा शूलों से वास्ता पड़ता है,
वैसे ही हमारा भी कंटकों से रास्ता रुकता है।
उड़ान से हमने मानव तुमको हैरान कर दिया,
तभी तो मिल तुमने हवाई जहाज बना लिया।।

हौसले से जहाँ तुमने अंतरिक्ष भी नाप लिए,
अगाध रत्नाकर और महीधर भी माप दिए।
वहाँ हम परिंदें भी कई-कई कोस नित चलते,
कठिन श्रम से पेट के लिए रोटी-खोज करते।।

विश्वास की अद्भुत-मशाल हम भी जलाते हैं,
मेहनत बल पे सबकुछ हम परिंदें पा जाते हैं।
नीड़ बनाने को तिनका-तिनका चुनकर लाते,
थककर या रुककर राह नहीं अपनी बदलते।।

भले ही लघु काया है परंतु हौसला विशाल है,
पथ में हमारे फैला रहता ख़तरों का जाल है।
उन्मुक्त गगन पर हम सब परिंदे विचरते रहते,
सरिता-घाटियाँ लाँघने से भी नहीं हैं हिचकते।।

छल-कपट से मैं परिंदा कोसों ही दूर रहता हूँ,
पराजय को विजय में सदैव बदल सकता हूँ।
कोसों दूर जाकर भी राह नहीं कभी भूलता हूँ,
संध्या होते ही चहचहाहट से नभ भर देता हूँ।।

जैसे तुम मानव आस-दीप जला प्रयत्न करते,
सकारात्मक सोच से निज जीवन बदल देते।
वैसे ही हम जिजीविषा ख़ातिर उड़ान भरते,
संकट के तरकश सहकर आगे को ही बढ़ते।।

मनमोहक रंगों और सुर से हम तुम्हें लुभाते,
सूर्य-चंद्र को छूने की ललक हम परिंदें रखते।
क्यों निज लालच में परों तो हमारे बाँध देते,
पिंजरे में बंदी बना क्यों बेबस जीवन करते।।

तुम्हारी तरह हम भी आज़ादी चाहनेवाले हैं,
जीवन का लुत्फ़ ज़िंदादिली से उठानेवाले हैं।
पग-पग पर एक नया संदेश तुम्हें देते रहते हैं,
कर्मवीर बनने का मूल-मंत्र दिलों में भरते हैं।।

अर्चना कोहली - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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