संदेश
करो मात-पिता सेवा - मनहरण घनाक्षरी छंद - अजय कुमार 'अजेय'
करो मात-पिता सेवा, मिले जीवन मे मेवा, ऐसे महानुभाव का, भाग्योदय मानिए। सदा सेवा भाव रखे, मान सम्मान भी करे, जग में सबसे बड़ा, बादशाह ज…
अंतिम संस्कार का विज्ञापन - कहानी - मानव सिंह राणा 'सुओम'
विज्ञानपन देखा तो हिल गए राजमणी त्रिपाठी। “कैसा कलियुग आ गया है? अब माँ बाप के लिए बच्चों पर इतना समय नहीं कि वह उनको अपना समय दे सके …
भागमानी माँ-बाप - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
चूँकि वेद सुबह से शाम तक माँ के फ़ोन का कोई उत्तर नहीं दिया था इसलिए माँ-पिता जी की चिंता दूर पढ़ने गए इकलौते बेटे के प्रति डाँट के रूप…
जीवन की भूल - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
माना कि भूल होना मानवीय प्रवृत्ति है जो हम भी स्वीकारते हैं। मगर अफ़सोस होता है जब माँ बाप की उपेक्षाओं उनकी बेक़द्री को भी हम अपनी भूल …
ख़ामोशी - लघुकथा - सुधीर श्रीवास्तव
आज आप सुबह से बहुत चुपचाप हैं। क्या बात है? तबियत तो ठीक है न? रमा ने अपने पति राज से पूछा। राज बोले- नहीं लखन की माँ। बस किसी निर्णय …
माँ-बाप - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
बूढे माँ-बाप को देखकर, क्यों मुख मोड़ लिया करते हो। माँ-बाप की भी कुछ इच्छाएँ है, तुमसे कुछ कहते पर तुम क्यों मुँह सिला करते हो। माँ-बा…
अपेक्षाएँ - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
बचपन से बुढ़ापे तक हर समय पनपती हैं असीमित अपेक्षाएँ, माता पिता की तमन्नाए व मुरादें होती हैं भारी। पिता चाहता है बालक मेरा सहारा बने…
मातु पिता बन्दहुँ सदा - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मातु पिता बन्दहुँ सदा, रखूँ स्मृति सम्मान। मातु ऋणी मैं हूँ विनत, स्नेहाशीष रसपान।।१।। मातु पिता सेवा बिना, मिले न ममता छाँव। बिन बिखर…
अनदेखा क्यों? - कविता - संजय राजभर "समित"
चंद लम्हें! माँ-बाप के पास बैठकर देखो वो सारी तकलीफें भूल जाते हैं। जब हम थके हुए घर आकर बच्चों से पूछ लेते हैं "मम्मी-पापा …
माता पिता के दायित्व - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
आज के इस व्यस्त वातावरण और तकनीकी युग में माता पिता के लिए भी अपने दायित्वों का निर्वहन कठिन होता जा रहा है। बढ़ती महँगाई ने जीवकोपार्ज…
पिता - कविता - कपिलदेव आर्य
पिता धरती पर ख़ुशियों का फ़रमान है, पिता का साया नहीं हो, वो घर बेजान है! जिनके सरों पर पिता नामका आसमान है, उनके लिए दुनिया में…
माँ-पिता - कविता - कपिलदेव आर्य
वो कहते हैं कि मेरे चेहरे पर तेज़ भरपूर है, और मैं कहता हूँ, मेरे माता-पिता का नूर है! उन्हीं की दुआओं से चमकते हैं सितारे मेरे, …
मात-पिता भगवान - कविता - सतीश श्रीवास्तव
उनको धरती पर कहते हैं सारे लोग महान, जिनकी दृष्टि में होते हैं मात-पिता भगवान। स्वर्ग इन्हीं चरणों में बसता कहीं न जाएंगे, इतना प…
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