मातु पिता बन्दहुँ सदा - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

मातु पिता बन्दहुँ सदा, रखूँ स्मृति सम्मान।
मातु ऋणी मैं हूँ विनत, स्नेहाशीष रसपान।।१।।

मातु पिता सेवा बिना, मिले न ममता छाँव।
बिन बिखरे मुस्कान जग, देता जीवन घाव।।२।।

मातु पिता सेवा बिना, क्या होबे उपवास।
उभय तिरष्कृत जो करे, कहाँ देवता वास।।३।।

मातु पिता हिय प्रेम धन, हर खत रखा सहेज।
अश्रु नैन पढ़ आज भी, समझ रहा खत क्रेज।।४।।

ममता समता प्रेम का, मानक माँ की गोद।
चन्द्रप्रभा शीतल सुभग, माँ आँचल मन मोद।।५।।

मातु पिता सत्प्रेरणा, बन  उलझन उपचार।
दिग्दर्शक सद्मार्ग की, हितकर यश उपहार।।६।।

भज रे मानस श्रीहरि, मातु पिता गुरु प्रीत। 
मानवता नवनीत जग, गाओ भारत गीत।।७।।

मातु पिता जीवन सफल, सीमा पर जिन लाल।
तन मन धन अर्पण करे, उन्नत भारत भाल।।८।।

मातु पिता अनमोल धन, बस ममता अरु प्यार। 
रिश्ता भूला पूत अब, अर्थ बना दीवार।।९।।

ऋणी अनंत मातु पिता, चुका सके नहि कर्ज। 
तन मन धन दे पूत को, निभा श्रवण बन फ़र्ज।।१०।।

मातु हृदय धरणी समा, पिता समर्पण व्योम। 
कर्जदार हम उभय का, मातु पितु सम ओम।।११।।

मातु पिता बन्दहुँ सदा, रखूँ स्मृति सम्मान।
मातु ऋणी मैं हूँ विनत, स्नेहाशीष रसपान।।१२।।

क्षीर वक्ष नैनाश्रु से, पालित नित सन्तान।
चढ़ी आज भौतिक नशा, मातु पिता अपमान।।१३।।

रात दिन नित यथा तथा, धन संचय माँ बाप। 
बन सुपात्र सन्तान दे, वृद्धाश्रम संताप।।१४।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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