पिता - कविता - कपिलदेव आर्य

पिता धरती पर ख़ुशियों का फ़रमान है,
पिता का साया नहीं हो, वो घर बेजान है!

जिनके सरों पर पिता नामका आसमान है,
उनके लिए दुनिया में सबकुछ आसान है!

पिता, जो संतान को कभी टूटने नहीं देता, 
पर औलाद की एक बात से टूट जाता है!

जब भी औलाद के क़दम लड़खड़ाते हैं,
घर पर पापा हैं, सोचकर संभल जाते हैं!

पिता हर दर्द सहकर भी सदा मुस्कुराता है,
अपनी औलाद के लिए हर ग़म उठाता है!

माँ ममता का सागर, पिता हौंसले का नाम, 
इसलिए होते हैं मां-पिता धरती के भगवान!


कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

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