अनदेखा क्यों? - कविता - संजय राजभर "समित"

चंद लम्हें!
माँ-बाप के पास बैठकर देखो
वो सारी तकलीफें भूल जाते हैं।


जब हम थके हुए घर आकर
बच्चों से पूछ लेते हैं
"मम्मी-पापा खाना खाये"
बच्चे कुछ कहते
बीबी बीच में टपक पड़ती है
"हाँ हाँ वो लोग खाना खा लिये हैं,
और आराम कर रहे हैं।"


और आप?
शकुन से अच्छी नींद लेते हैं।
माँ-बाप
दीवाल पर कान लगाकर
सुनते हैं
आहट लेते हैं
काश!
एक बार मेरा बेटा
पास आकर बैठता।
बस एक सवाल
अनदेखा क्यों?
क्या आपका यही कर्तव्य है?


संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)


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