मात-पिता भगवान - कविता - सतीश श्रीवास्तव

उनको धरती पर कहते हैं सारे लोग महान,
जिनकी दृष्टि में होते हैं मात-पिता भगवान।
स्वर्ग इन्हीं चरणों में बसता कहीं न जाएंगे,
इतना प्यार दिया है हमको भूल न पाएंगे।
इनके चरणों से बढ़कर फिर दूजा कौन जहान,
जिनकी दृष्टि में होते हैं मात-पिता भगवान।
उंगली पकड़ चलाया हमको दुनियां दिखलाई,
सूरज चांद सितारों वाली दुनिया बतलाई ।
उनकी सेवा करना है बस यही हमारी आन,
जिनकी दृष्टि में होते हैं मात-पिता भगवान।
मात-पिता से विमुख हुए तो पाप बड़ा भारी,
कितनी ही ऊंचाई पालें पर पारी हारी ।
आ बैठें उनके चरणों में बढ़ जाएगी शान,
जिनकी दृष्टि में होते हैं मात-पिता भगवान।
उनकी छाया कितनी शीतल निर्मल होती हैं,
ममता भरी दुआयें कितनी निश्छल होती हैं।
उनके बिना हमारी दुनिया है सचमुच वीरान,
जिनकी दृष्टि में होते हैं मात-पिता भगवान।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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