संदेश
जंगल का दृश्य - कविता - आशीष सिंह
ये लहरें नदी की, पावस की फुहार, ये है कानन का तरुवर, यहाँ शीतल बयार। यहाँ तितलियों का डेरा, फूल खिलते हज़ार, यहाँ चिड़ियों की चह-चह, यह…
नन्हा-सा पौधा - कविता - बिंदेश कुमार झा
धरती की छत तोड़कर, एक पौधा बेजान-सा आकार, सूर्य की लालिमा से प्रोत्साहित उठ रहा है देखने संसार। बादलों ने चुनौतियाँ दीं पत्थर की बूंदे…
यमुना - आलेख - बिंदेश कुमार झा
सदियों से यमुना और कारखानों के बीच के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। शायद वैश्वीकरण ने यमुना के उपकारों को भुला दिया है। यमुना को इस बात से…
मानवता बेहाल - कविता - ममता शर्मा 'अंचल'
घर के पीछे आम हो, और द्वार पर नीम, एक वैद्य बन जाएगा, दूजा बने हकीम। पीपल की ममता मिले, औ बरगद की छाँव, सपने आएँ सगुन के, सुख से सोए ग…
तापमान - कविता - डॉ॰ सिराज
धरती जल रही है, गर्मी हदें पार कर रही हैं। मनुष्य ख़ुद को बचाने के उपाय तो ढूँढ़ लिया है, लेकिन प्रकृति को बचाने का विचार विलुप्त है। क…
स्वार्थी मनुष्य - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
मानव ने पूरी धरती पर, आधिपत्य है जमा लिया। पूरी पृथ्वी पर मानव ने, बस अपना घर बना लिया॥ यद्यपि ईश्वर ने मानव के– साथ और भी भेजे थे। पश…
पर्यावरण - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
चलो बचाएँ प्रकृति धरा को, वृक्षारोपण मिल साथ करें। बाढ़, भूकम्प तूफ़ाँ कहर ताप, पर्यावरण प्रदूषण मुक्त करें। हवा सलिल विषाक्त बह रह…
धरती का शृंगार मिटा है - कविता - राघवेंद्र सिंह
धधक उठी है ज्वालित धरती, जल थल अम्बर धधक उठा है। अंगारों की विष बूँदों से, प्रणय काल भी भभक उठा है। सूख गए हैं तृण-तृण सारे, दिग दिगंत…
बिंदु-बिंदु शिल्पकार है - कविता - मयंक द्विवेदी
सीमित ना हो दायरा उर के द्वार का, प्रकृति भी देती परिचय दाता उदार का। यूँ ही नहीं होता सृजन उपलब्धि के आधार का, छूपी हुई नींव में आरंभ…
शिशिर सुंदरी - कविता - सतीश पंत
नवल भोर संग धवल कुहासा शिशिर ओढ़ जब आई, वसुंधरा से शैल शिखर तक मेघावली सी छाई। शिशिर सुंदरी रूप मनोहर देख देह सकुचाई, शीत वायु के प्रब…
मुस्कान से भरी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
खेत में फ़सल है मुस्कान से भरी। ख़्यालों के क़ाफ़िले हैं रुके हुए। बरगद के कंधे लगता झुके हुए॥ फ़सलों की साड़ी लगती हरी-हरी। नन्हे-नन्हे हा…
पर्यावरण संरक्षण - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
निज राष्ट्र की पुनीत पावन धरा को, मिलकर हरियाली से प्रफुल्ल बनाएँ। पर्यावरण संरक्षण में हम दे योगदान, प्रकृति के प्रति आत्मकर्तव्य निभ…
हे वसुधा के शृंगार - कविता - मयंक द्विवेदी
हे! वसुधा के शृंगार हे! प्रकृति के उपहार हे! सुवासित मल्हार हे! ऋतुओं के ऋतुराज देख रहे नयन शबनम शबनम के जलकण में श्याम मेघों के दर्प…
भौतिकवाद, प्रकृतिवाद और हमारी महत्वाकांक्षाएँ - लेख - श्याम नन्दन पाण्डेय
सुदूर गाँव और जंगलों मे बैठा कोई बुज़ुर्ग व्यक्ति और उसका परिवार जो खेती बाड़ी करता है, गाय, भैंस और बकरियाँ चराता है, हाथ मे स्मार्ट फ़ो…
प्रकृति का प्रेम - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
तिमिर फैले धरा पर जहाँ-जहाँ, स्नेह लौ से दीप जलाए जाते। खिलखिलाते यह धरा चहुँओर, प्रेम पुष्प के पौधे लगाए जाते। करुणा की इत्र महकते धर…
पर्यावरण - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
पर्यावरण है प्रकृति का आखर, सूरज, चंदा, धरती और बादर। प्रकृति का अद्भुत चहुँदिशि घेरा, चंदा डूबा फिर हुआ सवेरा। कौन इन सबसे अनजाना होग…
मैं प्रकृति प्रेमी - कविता - रूशदा नाज़
मैं प्रकृति प्रेमी वो मेरी हमसाथी। मैं उदास हूँ, वो भी उदास हो जाती, मैं निराश हूँ, वो भी अश्क बहाती। उमड़ते-घुमड़ते बादल मेरे दु:खो क…
हरी भरी हो धरती अपनी - कविता - बृज उमराव
हरी भरी हो धरती अपनी, देती जीवन वायु। पथ में पथिक छाँव लेता हो, शुद्ध करे स्नायु॥ तापान्तर में वृद्धि दिख रही, जागरूक हो जनमानस। …
ब्रह्मानंद का स्वर्ग दौरा - कहानी - अशफ़ाक अहमद ख़ां
यू॰पी॰ के कई ज़िले पिछले दिनों सूखे की चपेट में थे। किसान पूरे सावन इंद्रदेव की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते रहे, इंद्र देव को ख़ुश करने…
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