प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव

प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव | Prakriti Kavita - Prakriti Prem Gamlon Mein Seemit | प्रकृति पर कविता
सकल सृष्टि में संकट छाया, दूषित हुआ समाज।
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥

ब्रह्मा ने जब सृष्टि बनाई, रखा सभी का ध्यान।
जीव-जन्तु मानव जल उपवन, पर्वत वायु विधान॥
रखीं संतुलित सारी चीज़ें, रहे श्रेष्ठ यह सृष्टि।
जन्म-मृत्यु का खाका खींचा, रखकर अनुपम दृष्टि॥
चली सृष्टि जब अपने पथ पर, बढ़ते गए विकार।
लोभी बन ज्ञानी मानव ने, दूषित किए विचार॥
प्रकृति हनन करके मानव ने, किया ग़लत बहु काज।
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥

वृक्ष काट नित भवन बनाए, रचा सड़क का जाल।
त्याग प्रकृति की चिंता सारी, चला हठीली चाल॥
सपने देखे बस माया के, संतति चिंता छोड़।
प्राणवायु नित घटती जाती, बढ़े रोग से जोड़॥
व्यर्थ बहाता जल भी अतिशय, करे सृष्टि से खेल।
तकनीकी का बना दास अब, किरणों से कर मेल॥
जिससे पक्षी घटते जाते, प्रकृति विरोधी काज।
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥

अभी समय है सोचें हम सब, करें प्रकृति हित कर्म।
लोभ भवन माया का तजकर, समझें सारा मर्म॥
वृक्ष लगाएँ धरा सजाएँ, सजा हृदय में चित्र।
करें संतुलित पुनः सृष्टि को, जो जीवन की मित्र॥
प्रकृति हमारी जीवन दाता, ज्ञानी कहते राज।
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥

ओम प्रकाश श्रीवास्तव - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)

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