मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)
हे वसुधा के शृंगार - कविता - मयंक द्विवेदी
शुक्रवार, दिसंबर 08, 2023
हे! वसुधा के शृंगार
हे! प्रकृति के उपहार
हे! सुवासित मल्हार
हे! ऋतुओं के ऋतुराज
देख रहे नयन
शबनम शबनम के जलकण में
श्याम मेघों के दर्पण में
किसलय, कुसुमों के रंगों में
हिलोर खाती जल तरंगों में
हे! इत्र भरे कमल कुमुद के कोषागार
हो आनन्द से सराबोर
हे! नयनों के नयनाभिराम
देख रहे नेत्र अपलक निहार
देख रहा मन
वल्लरी-वल्लरी के वितान में
मंजरी-मंजरी के उत्थान में
अल्हड़ मधुकर के गुंजान में
चंचल झरनों के स्वर गान में
कर रहे हृदय से स्वागत
आगंतुक नए मेहमान का
बसंत के सम्मान का
ईश्वर के प्रमाण का
प्रकृति के वरदान का
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