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अंतिम संस्कार का विज्ञापन - कहानी - मानव सिंह राणा 'सुओम'
विज्ञानपन देखा तो हिल गए राजमणी त्रिपाठी। “कैसा कलियुग आ गया है? अब माँ बाप के लिए बच्चों पर इतना समय नहीं कि वह उनको अपना समय दे सके …
देर कर दी आते-आते - गीत - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
ख़ूब कमाया धन दौलत, थक गए तुम्हें बुलाते, प्राण पखेरू उड़ गए उनके, जन्मदाता कहलाते। उठ गया साया सर से तेरा, कभी पुत्र धर्म निभाते, बुढ़…
कुल की शान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जिन उँगलियों को पकड़कर पिता ने चलना सिखाया, उसी वक्त वह अनकहे ही कह देता है– “जीवन के हर क्षण में तुम्हें प्यार करेंगे” पर प्रकट भाव म…
पहचान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
माँ ने जन्म दिया बाबूजी ने मज़बूत हाथों का सहारा तब बनी मेरी पहली पहचान। गाँव से निकलकर शहर में आया चकाचौंध भरी रौशनी तो मिली पर ना मिल…
पिता - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
पिता शब्द ही अनमोल है, इसका नहीं कोई मोल है। पिता ही संघर्ष का दूसरा नाम है, जिसके बिना जीवन अनाम है! जो उँगली पकड़ चलना सिखाते है, हर…
पिता - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
धरा पर जिसने हमको लाया, पकड़ के उँगली चलना सिखाया। पुरुष नहीं वह देव हैं, चरणों में जिनके संसार समाया। बिखरे ना कभी भविष्य हमारा, संस्…
छाँव सा है पिता - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
ग़लतफ़हमी है के अलाव सा है पिता, घना वृक्ष है पीपल की छाँव सा है पिता। लहजा थोड़ा अलग होता है माना पर प्रेम अंतस में लबालब भरा है, अपने प…
मैं तुम्हारा पिता - कविता - अनिल कुमार
क्या तुम मुझे पहचानते हो? मैं तुम्हारा पिता तुम मेरे अंश हो। तुमने स्पर्श पहचाना मेरा तुम! मुझे अपना मानते हो? अभी तुम नन्हें पुष्प ह…
पिता - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
मुश्किल राहों का सफ़र तय कर पाना यूँ तो, हर किसी के लिए इतना आसान नहीं होता है। इस बात का दर्द उनसे पूछकर देखें ज़रा! जिनके सिरों पर पित…
छोड़ चले हैं बाबूजी - गीत - प्रवीन 'पथिक'
जीवन के सूने आँगन में, यादों की पतझड़ है छाई। एक दिवस ऐसा न गुज़रा, जिस रोज़ उनकी याद न आई। कर अनाथ हम माँ बेटे को, मुख मोड़ चले हैं बाब…
बिदाई : एक पिता का दर्द - कविता - जॉयस जया रौनियार
नन्ही सी बगिया का फूल आज होके चली पराई, देख पिता कि मन और आँख भर आई, पर होठो पे बस मुस्कान ही दिखाई। जिन्हें हाथो से पालने को इतने ध्य…
पापा! आप पीछे रह गए - कविता - ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'
नौ महीने कोख में रख माँ ने था पाला, आपने उम्र भर दिल में, मगर माँ ने लाड़ लड़ाया, आप अनुशासन में रह गए, माँ हमारी दोस्त बन गई पापा! …
मैं पिता जो ठहरा - कविता - विजय कृष्ण
मैं पिता जो ठहरा- प्यार जता नहीं पाया। बच्चे माँ से फ़रियाद किया करते थे, पापा को घूमने के लिए मना लो, ये मनुहार किया करते थे। बच्चों स…
पिता ही करता ऐसा काम - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
चुप रह कर जो हर पल सोचे, मौन रहकर करे सब काम। सामने वाला जान भी न पाए, करे उसके हर ज़रूरतों का इंतज़ाम। ऐसा करने वाला कोई और नहीं, सिर्फ…
पिता - कविता - काजल चौधरी
पिता के बाद, याद आता है, बहुत कुछ- उनका त्याग, उनकी तपस्या। हमारी ख़ातिर हमारी परवरिश हेतु, हमीं से दूर रह हर पल चिंताकुल रहना, हमारी ज…
मन करता है - कविता - सौरभ तिवारी
बैठ पिता के काँधों पर इठलाने को मन करता है, मेले के खेल खिलौनों को घर लाने को मन करता है। पिता अगर फिर से मिल जाएँ उन्हें छुपा कर रख ल…
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं? - कविता - स्मृति चौधरी
कैसे लिखूँ तुम्हें मैं? कैसी तस्वीर बनाऊँ? मन और देह की भाषा, परिभाषा लिख ना पाऊँ! उंगली थाम सिखाया चलना, सतपथ की दिशा बताई, साहस न…
पिता - कविता - डॉ. अमृता पटेल
कई शाम सिसकियाँ ली थीं फ़ोन पर मैंने, और आप अगले ही दिन मेरे होस्टल में होते थे। 'बालमन' अंदाज़ा ना था उसकी व्यस्तता, ज़िम्मेदारि…
पिता और उनका अक्स - कविता - डॉ. सत्यनारायण चौधरी
कहता नज़र आता है जब हर एक शख़्स, पिता से ही मिलते हैं तुम्हारे नैन और नक़्श। बार-बार नज़र आता है मुझमें, मुझे पिता का ही अक्स। मेरे पिता ह…
छाया है पिता - कविता - डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा"
बरगद की घनी छाया है पिता, छाँव में उसके भूलता हर दर्द। पिता करता नहीं दिखावा कोई, आँसू छिपाता अन्तर में अपने। तोड़ता पत्थर दोपहर में …