बिदाई : एक पिता का दर्द - कविता - जॉयस जया रौनियार

नन्ही सी बगिया का फूल आज होके चली पराई,
देख पिता कि मन और आँख भर आई,
पर होठो पे बस मुस्कान ही दिखाई।
जिन्हें हाथो से पालने को इतने ध्यान से झूलाया था,
वही हाथो से आज उसे किसी और संग भेजने का दिन आया था।

एक नए घर में, नए लोगो के संग,
जाने कैसे रखेंगे मेरी बेटी को उधर,
इस डर ने उन्हें बार-बार सताया था,
भाव वो मन के
उस पिता ने बहोत अच्छे से छुपाया था।

दर्द ये कई ज़ख़्मों से भी गहरा था,
ख़ुद के घर कि खिलखिलाती सी गुड़िया,
किसी और के संग ब्याहना ज़रूरी था।
बना के ख़ुद को पत्थर सा बेजान कुछ पल,
कर ही दिया बिदाई उसकी,
क्यूँकि ये मजबूरी ही सही पर ज़रूरी था।

जॉयस जया रौनियार - काठमांडू (नेपाल)

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