हे माता! अभिनंदन - कविता - गोपी नाथ कृष्ण

हे विद्या की देवी! तेरे चरणों का वंदन।
हे माता! अभिनंदन, अभिनंदन, अभिनंदन।।

न फ़ोटो न मूर्ति करूँ कैसे पूजा,
न देवा न देवी सिवा तेरे दूजा।
मैला-कुचैला मन तुझको समर्पण ,
हे माता! अभिनंदन, अभिनंदन, अभिनंदन।।

न धूप-दीप नैवेद्य न पूजा की थाली,
हृदय मेरा माता है भक्ति से खाली।
न गंगोट चानन लगाऊँ क्या चंदन,
हे माता! अभिनंदन, अभिनंदन, अभिनंदन।।

नहीं है चढ़ाने को फूलों की माला,
न घी तेल दीपक करूँ क्या उजाला?
जन-जन में भर दे परा ज्ञान अंजन,
हे माता! अभिनंदन, अभिनंदन, अभिनंदन।।

नारी का सम्मान हो इस जगत में,
ऐसी सुबुद्धि तू भर दे भगत में।
हो सर्वत्र शान्ति कहीं ना हो क्रन्दन, 
हे माता! अभिनंदन, अभिनंदन, अभिनंदन।।

'कृष्ण' को शरण में हे माता लगा लो,
हृदय में ज्ञान का कमल को खिला दो।
झुका है माँ मस्तक है तेरा अभिवंदन,
हे माता! अभिनंदन, अभिनंदन, अभिनंदन।।

गोपी नाथ कृष्ण - सहरसा (बिहार)

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