मैं तुम्हारा पिता - कविता - अनिल कुमार

क्या तुम मुझे पहचानते हो?
मैं तुम्हारा पिता
तुम मेरे अंश हो।
तुमने स्पर्श 
पहचाना मेरा
तुम! मुझे अपना मानते हो?
अभी तुम
नन्हें पुष्प हो
तितली जैसे
थोड़े चंचल
और नटखट भी।
तुम्हारी कोमल
निश्छल मुस्कान 
मेरी जीवनरेखा बन,
सब थकान
सारी दुविधाएँ 
मिटा देती है
क्या तुम यह जानते हो?
मैं तुम्हारा पिता
क्या तुम मुझे पहचानते हो?

अनिल कुमार - बून्दी (राजस्थान)

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