कहाँ मिलेगी अब वह छाँव? - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'

कहाँ मिलेगी अब वह छाँव? - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी' | Hindi Kavita - Kahaan Milegi Ab Wah Chhaanv - Kumud sharma 'Kashvi' | पिता पर हिन्दी कविता, Hindi Poem to Father
रहा कहाँ अब वो
परिवार का मुखिया,
वटवृक्ष सम जो कभी 
सीना तान खड़ा था,
उदित हुए थे जिसकी
छत्रछाया में नव पल्लव
खिले थे पुष्प सुनहरे
आँगन की फुलवारी में
समेटे था अनुभूतियों को
ताकीद के साथ देने बसेरा,
गहन छाँव लिए स्कंधज सा
वह परिवार का बड़ा था,
कहाँ मिलेगी अब वह छाँव?
जिसके साथ जीवन जुड़ा था,
जिसने पोषित किया था
अपने अंक के संरक्षण में
संचारित की थी प्राणवायु 
संतति को अस्तित्व दिलाने में,
आधुनिकता की सरपट दौड़ में
करवट ली बदलते वक्त ने,
टूट कर गिरी शाख से आज
वो कोसों दूर खड़ा था...,
कहाँ मिलेगी अब वह छाँव?
जिसके साथ जीवन जुडा़ था,
कई आँधियाँ झेली थी उसने
प्रहरी बन सब सह लिया था,
पर पृथक होने का दर्द समेटे
आज वह ठूँठ सा बँजर
खण्डहर बने आशियाने में
निःशब्द कोने में पड़ा था,
रोक न सका था रिसते रक्त को
जो अमलतास सा गुणी बडा़ था,
गहन छाँव लिए स्कंधज सा
वह परिवार का बड़ा था,
कहाँ मिलेगी अब वह छाँव?
जिसके साथ जीवन जुड़ा था।

कुमुद शर्मा 'काशवी' - गुवाहाटी (असम)

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