संदेश
न्याय याचना - कविता - विजय कुमार सुतेरी
रचना पृष्ठभूमि: यह रचना पश्चिम बंगाल में हाल में हुए एक डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के विषय में है जिसमें महिलाओं को अपनी शक्ति और ऊर्…
नारी: कोमलांगी नहीं दृढ़ - कविता - पी॰ अतुल 'बेतौल'
एक झलक मिली थी तुम्हारी, चिंताओं की लकीरें दिखी भारी। ख़ुशियों पर धूल जमी है क्यों, धूमिल क्यों दिख रही ख़ुशगवारी। फिर आज बहुत विकल अकेल…
परिभाषा नारी कठिन - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
परिभाषा नारी कठिन, महिमा कठिन बखान। हे अम्बा धरणी जयतु, कठिन मातु सम्मान॥ लज्जा श्रद्धा मातृका, ममतांचल संसार। क्षमा दया करुणा हृदय…
क्षितिज के पार जाना है - गीत - उमेश यादव
उठो जागो बढ़ो आगे, क्षितिज के पार जाना है। सुनो नारियों, आगे बढ़कर, अपना मार्ग बनाना है॥ जकड़ी थी ज़ंजीरों से पर, तूने क़दम बढ़ाई थी। झाँसी…
सुनो सबकी करो अपने मन की - लेख - कुमुद शर्मा 'काशवी'
इस उपरोक्त लोकोक्ति (मुहावरे) का अर्थ कितना सीधा एवं सरल है ना! कि हमें बातें तो सबकी सुन लेनी चाहिए पर हमारे मन को जो अच्छा लगे उसी क…
मैं हर महीने भीग जाती हूँ - कविता - सुधीरा
कुदरत के नियम को मैं अपनाती हूँ, हर बार दर्द में और ज़्यादा जीना सीख जाती हूँ, मैं हर महीने भीग जाती हूँ। लाल रंग का मेरी ज़िंदगी से गहर…
मैं नारी हूँ - कविता - गणेश भारद्वाज
दे दो सम अधिकार मुझे भी, पथ में आगे बढ़ने दो न। चढ़ जाऊँगी कठिन चढ़ाई, साथ मुझे भी चलने दो न। मैं नारी हूँ पूरक तेरी, समता को स्वीकार …
त्रिया - कविता - पायल मीना
क्यों मूक बन बैठी है क्यों सह रही है नृशंसता के धनी मानुषों का व्यभिचार क्यों सिला तुमने स्वयं के अधरों को क्यों पड़ी हो तुम क्लांत, …
नारी - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवदुर्गा नवशक्ति है, सुता वधू प्रिय अम्ब। लज्जा श्रद्धा पतिव्रता, नारी जग अवलम्ब॥ करुणा ममता हिय दया, क्षमा प्रेम आगार। प्रतिमा नित…
मैं नर के उर की नारी हूँ - कविता - ईशांत त्रिपाठी
मैं नर के उर की नारी हूँ, कुंठित व्यथित दुखारी हूँ, अधिकारों की हनन कथा को, वर्णित करके हारी हूँ, मैं नर के उर की नारी हूँ। संवेदन का …
नारी तू अविचल है - कविता - जितेन्द्र शर्मा
नारी! तू अविचल है। पंकज सी कोमल है पर दृढ़ है तू गिरिवर सी, सागर सी गहरी है पर लहरों सी चंचल है, नारी! तू अविचल है। कुल वंश का मान है …
नारी उत्पीड़न - कविता - अभिनव मिश्र 'अदम्य'
नारी की नियति अस्मिता पर, जब प्रश्न उठा तुम मौन हुए। जीवन भर बंदिश में रहना, तुम कहने वाले कौन हुए। सदा प्रताड़ित होती नारी, क्या उसका …
गांधी जी और स्वतंत्र भारत की स्त्री - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
गांधी जी का जीवन-दर्शन आश्रय स्थल है उन जीवन मूल्यों और विचारों का जहाँ श्रम है, सादगी है सदाचार है, आत्मसम्मान है, सत्य है, अहिंसा है…
कच्ची मिट्टी - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
कच्ची मिट्टी सी मैं, सबके रंग में रंग जाऊँ, ढाल ख़ुद को...! अपनो की ख़ुशियों में, मन ही मन सुकून पाऊँ, हर रिश्ते के साँचे में, ढाल ख़ुद …
नारी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
नारी है तो जग है, नारी है तो जीवन का सुंदरतम मग है। अबला नहीं हो तुम तुम तो हो सबला, बचपन में माँ-बाप का खिलौना और आँगन में जैसे तु…
नारी सशक्तिकरण - घनाक्षरी छंद - संगीता गौतम 'जयाश्री'
ममता की मूरत हो, भला सा एहसास हो। आँचल में नेह भरा, प्रेम का आवास हो।। सृष्टि का निर्माण किया, वंश बढा धरा बनी। जहाँ नहीं दुख दिखे, सु…
तुझसे है यह जीवन सारा - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
तुझसे है यह जीवन सारा, लोक, धरा ये गगन अपारा, तुमसे है ख़ुशियाँ और प्यार तुमसे ही है ये घर परिवार, बच्चों के कोमल बचपन सी मुस्काती हर्ष…
नारी - दोहा छंद - भाऊराव महंत
रोक सको तो रोक लो, नारी की रफ़्तार। अब पहले जैसी नहीं, वह अबला लाचार॥ जब नारी चुपचाप थी, दिखता था संस्कार। बदतमीज़ लगने लगी, बोली जिस दि…
प्रश्न नहीं, परिभाषा बदलनी होगी - कविता - अपराजितापरम
चाहती हूँ, उकेरना, औरत के समग्र रूप को, इस असीमित आकाश में...! जिसके विशाल हृदय में जज़्बातों का अथाह सागर, जैसे- संपूर्ण सृष्टि की भाव…
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