तुझसे है यह जीवन सारा - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'

तुझसे है यह जीवन सारा,
लोक, धरा ये गगन अपारा,

तुमसे है ख़ुशियाँ और प्यार
तुमसे ही है ये घर परिवार,
बच्चों के कोमल बचपन सी
मुस्काती हर्षित सुकुमार,
तेरी एक मुस्कान से 
धूल जाता ग़म सारा।।
तुझसे है यह जीवन सारा,
लोक, धरा ये गगन अपारा,

तू शक्ति है आदि अनंता
नारी कहते तुझे सुजान,
हर पीड़ा को गरल सरीखी
पीती हो बन चंद्रभान
लिए आँचल में अमृत 
करती अभिसिंचित जग सारा।।
तुझसे है यह जीवन सारा,
लोक, धरा ये गगन अपारा,

अबला नहीं अब नहीं बेचारी
हर लक्ष्य विभेदन करती है
दुनियाँ का हर रिश्ता तुझसे
मनुज का सृजन तु करती है
तुझसे नहीं अछूता कुछ भी
सब कुछ है तेरी प्रतिच्छाया।।
तुझसे है यह जीवन सारा,
लोक, धरा ये गगन अपारा,

जयप्रकाश 'जय बाबू' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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