मैं नारी हूँ - कविता - गणेश भारद्वाज

दे दो सम अधिकार मुझे भी,
पथ में आगे बढ़ने दो न।
चढ़ जाऊँगी कठिन चढ़ाई,
साथ मुझे भी चलने दो न।

मैं नारी हूँ पूरक तेरी,
समता को स्वीकार करो तुम।
देवी कहकर छलना छोड़ो,
मन का दूर विकार करो तुम।

कोमलता है मन के भीतर,
पर तन से कमज़ोर नहीं हूँ।
सह जाती हूँ हर पीड़ा को,
भावों से मुँहज़ोर नहीं हूँ।

अपने पथ पर चलना सीखो,
मेरे पथ में अड़ना छोड़ो।
मानव हो तो मानव बनकर,
मानवता से नाता जोड़ो।

गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos