संदेश
टूटने का दर्द - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हृदय और मस्तिष्क में, दीर्घ काल से चल रहा अन्तर्द्वंद आदमी के विचार को शून्य और शिथिल कर देता है। आदमी का दर्द– और उसके भीतर उठने वाला…
अनोखा स्वप्न - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हर उदासी की, एक कहानी होती है। जिसे पढ़ना, सब पसंद करते हैं। भोगना नहीं। हर कहानी में एक दर्द होता है! जो भले हृदय में न हो, पर,…
गाँव का दर्द - कविता - संजय राजभर 'समित'
बचपन गाँव में जवानी शहर में एक बैल की तरह फिर बुढ़ापे ने कहा चल गाँव में, गाँव से पूछा– "तू पहले ही जैसा है कुछ भी नहीं बदला"…
दर्द - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कुछ दर्द बयाँ हो न पाए, ज़ुबाँ ख़ामोश पर हम आँसुओं को रोक न पाए, हवाएँ वही फ़िज़ाएँ वही पर तेरे चाँद से चेहरे को हम देख न पाए, एक र…
पहाड़ का दर्द - कविता - सुनील कुमार महला
कभी ग़ौर से देखना पहाड़ के पाहन को धरती माँ के कोख से निकला दृढ़ता से स्थापित स्पंदन सुनना तुम कभी पहाड़ के पाहन का हृदय के भीतरी कोनों मे…
यह दर्द बहुत ही भारी है - कविता - आयुष सोनी
कई ख़्वाब टूट कर बिखर गए, कैसा हर रोज़ तमाशा है। नम आँखें है, ख़ामोशी है, मन में इक घोर निराशा है। कहने को एक सवेरा है पर रात दुखों की ज…
दर्द बढ़ता सदा जताने से - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 दर्द बढ़ता सदा जताने से, है मुनाफ़ा उसे छिपाने से। क्यों सुनाएँ कथा-व्यथा अपनी, र…
दर्द-ए-दिल किस को सुनाऊँ मैं - ग़ज़ल - एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ा तक़ती : 2122 2122 2 दर्दे-ए-दिल किस को सुनाऊँ मैं, गुज़र रहे है दिन कैसे बताऊँ मैं। तन्हाइयों से तंग आ …
दर्द - कविता - ब्रजेश
दिल में दर्द भरा है इतना, कोई सहे भी तो सहे कितना। गैर तो ख़ैर गैर ही थे, अपनों ने भी कहाँ समझा अपना। मैं तो अपनों ही से हूँ हारा, शायद…
दर्द पलकों में छुपा लेते हैं - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1122 22 दर्द पलकों में छुपा लेते हैं, आग सीने में दबा लेते हैं। जिस्म ढकने को भले हों च…
कुछ दर्द कुछ ख़ुशी - कविता - सुनील माहेश्वरी
कुछ दर्द कुछ खुशी लिए चलो, कुछ नीरव चंचल हँसी दिए चलो, ये कारवाँ जो वक़्त के साथ चलता रहेगा, तुम हर क़दम पर रोशनी लिए चले चलो, होगी फिर …
दुःख और दर्द - गीत - पारो शैवलिनी
भूल की धूल को छांटना ही होगा। दुःख और दर्द को बांटना ही होगा। मोम से पिघलते ये रिश्ते ओ नाते, झूठी-झूठी कसमें, झूठे-झूठे वादे, विष भरे…
किसान का दर्द - मुक्तक - संजय राजभर "समित"
यह स्वेद सिंचित अनाज के दाने हैं। क्षुधा तृप्ति का यही मान्य पैमाने हैं। किसान की पीड़ा भला कौन सुना है इस बात पर नेता बड़े सयाने…
दर्द क्यों देते हो - कविता - उमाशंकर मिश्र
दर्द ने दर्द से पूछा कि क्यों दर्द देते हो इंसानों को? मिला जबाब पहाड़, पेड़, पौधे को रौद कर नाश कर दिया किसानों को। नदियों मे प्रदुषण, …
एक वीर-वधू के दर्द और तेवर - कविता - बजरंगी लाल
तिरंगे में हुआ लिपटा मेंरा अरमान जा रहा है, रचायी थी मैं जिसके नाम की मेंहदी, रचायी थी मैं जिसके नाम की मेंहदी- बिना देखे कहाँ वो…
दर्द - कविता - सलिल सरोज
दर्द को भी नदी की तरह बहना आना चाहिए वर्ना एक जगह पर जमा होकर यह दर्द, कीचड़ बन जाता है जो गीला हो या सूखा है बस केवल बदबू देता …
दर्द - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव
दर्द के गाँव में आशियाना मेरा । अश्क़ से ख़ास है दोस्ताना मेरा।। जिसपे था घोंसला वो शजर कट गया, दर-व-दर हो गया फिर ठिकाना मेर…
हक़ीक़त तो कुछ और थी - कविता - कुमार सौरव
आज मालूम पड़ा गनीमत हक़ीक़त तो कुछ और थी तेरे हर एक अश्क़ की सूरत तो कुछ और थी यू सासों का थमना रूह जा तिलमिल…
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