दर्द ने दर्द से पूछा
कि क्यों दर्द देते हो इंसानों को?
मिला जबाब पहाड़, पेड़, पौधे को रौद कर
नाश कर दिया किसानों को।
नदियों मे प्रदुषण, कारखानों के मलवो को बहाकर,
लाशो को नदी मे फेककर,
और जलचरो को खाकर,
खुले आम बंदूक से परिंदो को मारकर,
महानाश कर दिया कुदरत को।
और पुछते हो कि
हम दर्द क्यो देते है इन राक्षसों को।
मै दर्द कम दे रहा हूँ इन्हें,
अभी सुधरने का मौका दे रहा हूँ इन्हें।
चमगादड़ का सुप पीकर
कोरोना फैलाने आता है इन्हें,
तालाब जलाशय झरना नदी को
साफ करने नहीं आता है इन्हें।
घूस लेना सीख लेते है,
धोखा देना सीख लेते है,
कष्ट देना सीख लेते है प्रकृति को।
कभी देखा नही मुडकर ये प्रकृति को।
हमेशा नष्ट किया अपनी संस्कृति को,
और नाश किया सभ्यता की आकृति को।
इन्हे दर्द देता हूँ और देता रहूँगा।
नही सुधरे तो मार डालूँगा।
दर्द से तड़प तड़प कर ये मरेंगे,
तब हमारे शब्दकोष के दर्द शब्द को याद करेगे।
आँसुओ की किमत को ये समझेंगे,
प्रकृति के महत्व को ये परखेगे,
अपने अंदर की कमियो को जाँचेंगे
दर्द उसी दिन अपने आप समाप्त हो जाएंगे।
उमाशंकर मिश्र - मऊ (उत्तर प्रदेश)