अश्क़ से ख़ास है दोस्ताना मेरा।।
जिसपे था घोंसला वो शजर कट गया,
दर-व-दर हो गया फिर ठिकाना मेरा ।।
उनकी चाहत में लुट कर फ़क़ीर हो गया,
क्या सुना दूँ है इतना फ़साना मेरा ।।
मेरी मज़बूरियों को वो समझे नहीं,
उनको लगता रहा बस बहाना मेरा ।।
उनका ग़म अपना ग़म मैंने समझा सदा ,
उनको भाया न हँसना-हँसाना मेरा ।।
कितने इल्ज़ाम मुझ पर लगाये गए ,
उनके घर रोज़ था आना जाना मेरा ।।
प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)