दुःख और दर्द - गीत - पारो शैवलिनी

भूल की धूल को छांटना ही होगा।
दुःख और दर्द को बांटना ही होगा।

मोम से पिघलते ये रिश्ते ओ नाते,
झूठी-झूठी कसमें, झूठे-झूठे वादे,
विष भरे बरगद को काटना ही होगा।
दुःख और दर्द को बांटना ही होगा।।

मजहब से उपर उठो मेरे भाई,
खत्म करो मजहब की अंधी लड़ाई,
नफ़रत भरी खाई को पाटना ही होगा।
दुःख और दर्द को बांटना ही होगा।।

पारो शैवलिनी - चितरंजन (पश्चिम बंगाल)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos