गाँव का दर्द - कविता - संजय राजभर 'समित'
मंगलवार, अक्तूबर 03, 2023
बचपन गाँव में
जवानी शहर में
एक बैल की तरह
फिर बुढ़ापे ने कहा चल गाँव में,
गाँव से पूछा–
"तू पहले ही जैसा है
कुछ भी नहीं बदला"
गाँव ने कहा–
"जिसके बच्चे
जवानी में गाँव भूल जाते हैं
ऐसे नालायक़ बच्चों से
विकास कैसे होगा?"
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