संदेश
बचाले मेरे गाँव को भगवान - कविता - समुन्द्र सिंह पंवार
पहले जैसा नहीं रहा गाँव आज मेरा। देख कर माहौल उतर जाता है चेहरा। देता नहीं कोई अब तो रोटी गाय को, दूध-दही छोड़कर पीएँ सब चाय को। चींटिय…
मेरा गाँव - गीत - डॉ. देवेन्द्र शर्मा
आता है याद मुझको मेरा गाँव रे, ज़िंदगी ने खेला मुझसे, कैसा दाँव रे। ओ सजन साँवरे! याद आते मुझको, वे गूलर के पेड़, देखो वे खिरनीं जातीं…
गाँव - कविता - अजय गुप्ता "अजेय"
सुबह सबेरे गाँव में मेरे खुल जाते घर-द्वार। सुबह सबेरे गाँव में मेरे होती राम-राम पुकार। टेड़ी मेड़ी पगडंडीयों में भरी कीचड़ बेसुमार। पनघ…
मेरा गाँव - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मेरा गाँव मेरी बखरी, बखरी के आगे, लगत पौर सुहावनी। दादी कहे पुकार के, छीछौ ले के, तब घर में आवनी। मठ्ठा की महेरी, मक्का की रोटी, और नि…
गाँव का घर - कविता - गुड़िया सिंह
दरक गई है दीवारे, छत उसकी अब टपकती है, वो गाँव वाला घर तेरा, जिसमें अकेली "माँ" रहती है। बचपन मे जहाँ बैठकर, तू घण्टो खेला क…
गाँव में नई सोच - कविता - समय सिंह जौल
सीखा था जो शहर में सिखाना उसे चाहता हूँ, गाँव में एक नई सोच पैदा करना चाहता हूँ। पढ़े बेटा बेटी भविष्य उनका सँवारना चाहता हूँ, गाँव में…
मैं शहरी हो गया - कविता - संजय राजभर "समित"
जब कोई परदेशी गाँव आता था मिठाई, कपड़े घरेलू रोज़मर्रा की चीज़ें लाता था, जिसके घर आते थे उसके बच्चों में खुशियों की लहर दौड़ उठती थ…
तुम और अपना गाँव - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कमला चाची दरवाजे पर टुकटुकी लगाए आज सुबह से अपने परदेसी बेटे जीवन की अनवरत प्रतीक्षा कर रही थीं, होली का दिन जो आ गया था। मगर बेरोज़गार…
कोसों दूर - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मेरे गाँव का रास्ता कहीं सकरा कहीं ऊँचा कहीं कहीं कंकड़ काँटे और अद्रश्य मोड़ जिन्हें पार कर जाते है। श्रम से सरावोर मजदूर चौपाई गाता ग्…
गाँव की गलियों में बसा मेरा मन - कविता - श्याम "राज"
गाँव की गलियों में आज भी घूमने का मन करता हैं बिता जो बचपन लोट आये आज भी मन करता हैं। माँ के हाथ की पापा के डंडे की मार खाने का आज भ…
पर्यावरण और गाँव - दोहा - संजय राजभर "समित"
योगी रोगी हो गये, कहाँ करे अब वास? दूषित पर्यावरण से, मुश्किल में है साँस।। अब कहाँ है पात हरे, सावन में भी पीत। मौसम है बदला हुआ, गुस…
ले चलो मुझको मेरे गाँव - कविता - अंकुर सिंह
मुझे खूब याद आता है, मेरा प्यारा प्यारा गाँव। बारिश के दिनों में जहां, चलती कागज की नाव।। बहुत याद आता है मुझकों, कभी अपनों का वो साथ।…
अपने ही गाँव में - कविता - चंदन कुमार अभी
माता-पिता के पाँव में, माँ की आँचल के छाँव में। अक्सर मैं हँसता था, अपने ही गाँव में। फिर समय की मार चली, दुश्मनों की प्रहार च…
गांव कै मूल - भोजपुरी गीत - राहुल सिंह "शाहावादी"
गांव कै असीम मूल, कहे जात मोसे कहां । दर्द दूसरे को जहां , गांव कै जनाई में ।। स्वर्ग से भी स्वच्छतम, सज…
गाँव का बन्दा हूँ - कविता - चंदन कुमार अभी
मैं हूँ बन्दा गाँव का , गाँव में ही रहूँगा कितना दूर भागेंगे वो मुझसे , उनका पीछा नहीं छोडूंगा। चाहें कितनी भी शिकायत हो उनसे …
गाँव की ओर चल पड़े हैं भारतीय उद्योग - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
भारत गाँवो मे बसता है ये बात इस बात से भी सन्दर्भित है कि 70 प्रतिशत आबादी भारत के गाँवो मे अब भी है ।कोरोना काल से पहले की स्थिति …
गांव की व्यथा (वेदना) - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
जिस मिट्टी में जन्मा, पला-बढ़ा,खेला- कूदा, पढा़, संस्कारित हुआ , रोजी के नाम पर पर शहर की ओर कूंच कर गया। कमानी थी उसे रोटी, …
इसीलिए गाँव लौट आये हैं - कविता - सैयद इंतज़ार अहमद
दिल में लिए एक आस,सपने नयन में थे, जब हम गए परदेस,अपनो को छोड़ के, गांव की याद आती थी, हर पल हमें वहां, रहने लगे बेफिक्र हम, मुँह…