गांव कै मूल - भोजपुरी गीत - राहुल सिंह "शाहावादी"

गांव कै असीम मूल, 
       कहे जात मोसे कहां ।
दर्द दूसरे को जहां ,
       गांव कै जनाई में ।।
स्वर्ग से भी स्वच्छतम, 
       सजै है धरा पावस में ।
खेलै मिलि खेल सब,
       झाबर  की  तराई में ।।
हिरनो कै झुंडन में,
       वारह सिंह घूमि फिरै ।
नाचै मोर बागन में,
       बटेर मस्त खाई में ।।
बरगद कै छांव तलै, 
       पुरवा की वयार ढरै ।
मिलै वा निराली मजा,
       तीतर कै लराई में ।।
सुख वा मिलै ना कबौ,
       प्रेम  सिंधु  जीबन कै ।
गाय वैल भैंसन की,
       आनन्द जो चराई में ।।
सबै घर दूध दही, 
       खान अस जान परै ।
वस्तु का न भेद मिलै, 
       आपन औ पराई में ।।
दूध और भात गयो, 
       भोजन कै स्वाद गयो ।
मजा जो मिली थी कभी,
       अम्मा  कै  खटाई  में ।।
सवै मिलि सौंह करैं, 
        सौंह करि भोर करैं ।
प्रेंम सों ठनी थी रार, 
        नानद  भौजाई  में ।।
छुटकी भतीजी मोरी, 
        गुडियन के ब्याह करै ।
मजा ना मिली है आज, 
        ब्याह  सौ  कराई  में ।।
तीज त्यौहारन पै, 
        रंग थे अनेक वहां ।
मजा मिलती थी कभी,
        होरी  कै  जराई  में ।।
गये दिन गये वो सुख,
        करोर  धनवान भयो ।
कबौ जो मिला था सुख,
        फटी  सी  रजाई  में ।।
कबौ जो मिला था सुख ।।

राहुल सिंह "शाहावादी" - जनपद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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