कहे जात मोसे कहां ।
दर्द दूसरे को जहां ,
गांव कै जनाई में ।।
स्वर्ग से भी स्वच्छतम,
सजै है धरा पावस में ।
खेलै मिलि खेल सब,
झाबर की तराई में ।।
हिरनो कै झुंडन में,
वारह सिंह घूमि फिरै ।
नाचै मोर बागन में,
बटेर मस्त खाई में ।।
बरगद कै छांव तलै,
पुरवा की वयार ढरै ।
मिलै वा निराली मजा,
तीतर कै लराई में ।।
सुख वा मिलै ना कबौ,
प्रेम सिंधु जीबन कै ।
गाय वैल भैंसन की,
आनन्द जो चराई में ।।
सबै घर दूध दही,
खान अस जान परै ।
वस्तु का न भेद मिलै,
आपन औ पराई में ।।
दूध और भात गयो,
भोजन कै स्वाद गयो ।
मजा जो मिली थी कभी,
अम्मा कै खटाई में ।।
सवै मिलि सौंह करैं,
सौंह करि भोर करैं ।
प्रेंम सों ठनी थी रार,
नानद भौजाई में ।।
छुटकी भतीजी मोरी,
गुडियन के ब्याह करै ।
मजा ना मिली है आज,
ब्याह सौ कराई में ।।
तीज त्यौहारन पै,
रंग थे अनेक वहां ।
मजा मिलती थी कभी,
होरी कै जराई में ।।
गये दिन गये वो सुख,
करोर धनवान भयो ।
कबौ जो मिला था सुख,
फटी सी रजाई में ।।
कबौ जो मिला था सुख ।।
राहुल सिंह "शाहावादी" - जनपद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)