अपने ही गाँव में - कविता - चंदन कुमार अभी

माता-पिता के पाँव में,
माँ की आँचल के छाँव में।
अक्सर मैं हँसता था,
अपने ही गाँव में।

फिर समय की मार चली,
दुश्मनों की प्रहार चली। 
मैंने खुद कों भी झोंक दिया,
अपनों के बचाव में।

जज्बातों की बाढ़ आयी,
नासमझों कों न समझ आयी।
बाँध जैसी रिश्तों कों भी तोड़ दिया,
चन्द बातों के रिसाव में।

आशियाना भी मेरा लूट लिया,
हमदर्दी भी उसने कूट दिया।
मैंने खुद को ही फंसा दिया,
उसके ही दिए गए सुझाव में।

भावनाओं से मेरे खेल लिया,
गुनाहों की दरिया में धकेल दिया।
मैं स्वयं कों बचा पाया नहीं,
उसके अत्याचार धारा के बहाव में।

अपने विचारों से मुझे सशक्त किया,
उसके जीवन के लिए मैंने रक्त दिया।
जो दिन-रात ख़ुश हुआ करते थे,
मेरे जीवन के मुरझाव में।

माता-पिता के पाँव में,
माँ की आँचल के छाँव में।
अक्सर मैं हँसता था,
अपने ही गाँव में।

चंदन कुमार अभी - दयानगर, बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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