गाँव - कविता - अजय गुप्ता "अजेय"

सुबह सबेरे गाँव में मेरे खुल जाते घर-द्वार।
सुबह सबेरे गाँव में मेरे होती राम-राम पुकार।

टेड़ी मेड़ी पगडंडीयों में भरी कीचड़ बेसुमार।
पनघट को गागर लेकर जावत अल्हड़ नार।

पीपल की छैंया, अमुआ की डार।
नीम की निवोरी, पोखर की खार।

कांधे फावड़ा लेकर किसान जाता नदिया पार।
सुबह सबेरे गाँव में मेरे, उग आता नित प्यार।

बाडे़ में गऊ माता दुहते घर-घर में नर-नार।
पशुओं को सानी-कंडा देती नवयौवन आभार।

लहलहाती फ़सलेंं में जीवन अंकुर आधार।
कोयल की मृदुल कूक से, गुलशन छाए बहार।

घर में चूल्हा फूँके, खेत-खलिहान में करे कार।
ऐसी वीरांगना नारी है, हर चौखट हर घर द्वार।

रग-रग में दौड़ रहा खून, जंगे आज़ादी साकार।
सुबह सबेरे गाँव सरहद, अमर शहीद जयकार।

ऐसा प्यारा सबसे न्यारा मेरा गाँव मेरा आधार।
सुबह सबेरे गाँव में मेरे, पोषित-पल्लवित प्यार।।

अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)

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