गाँव में नई सोच - कविता - समय सिंह जौल

सीखा था जो शहर में सिखाना उसे चाहता हूँ,
गाँव में एक नई सोच पैदा करना चाहता हूँ।
पढ़े बेटा बेटी भविष्य उनका सँवारना चाहता हूँ,
गाँव में एक नई सोच पैदा करना चाहता हूँ।।

अभावों में कोई ना जिए उनको भी आए अमीरी,
सशक्त सभी बने न रहे किसी की फ़क़ीरी।
रह गया गाँव का कुछ कार्य अधूरा,
बचपन में नहीं कर पाया जिस को पूरा,
कर्ज़ वही उतारना चाहता हूँ।
गाँव में एक नई सोच पैदा करना चाहता हूँ।।

सर्व समाज के लोगों में रहे भाईचारा,
किसी के दिल में ना रहे कारा।
सभी सहयोगी बने यही चाहता हूँ,
गाँव में एक नई सोच पैदा करना चाहता हूँ।।

गाँव में हो एक आधुनिक पुस्तकालय,
बेटा बेटी पढ़ें सभी समझे देवालय।
शिखर को छुएँ सभी पर उनके लगाना चाहता हूँ,
गाँव में एक नई सोच पैदा करना चाहता हूँ।।

समय सिंह जौल - दिल्ली

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