पर्यावरण और गाँव - दोहा - संजय राजभर "समित"

योगी रोगी हो गये, कहाँ करे अब वास?
दूषित पर्यावरण से, मुश्किल में है साँस।।

अब कहाँ है पात हरे, सावन में भी पीत।
मौसम है बदला हुआ, गुस्से में  है मीत।। 

ताल पोखर कहाँ गये, कहाँ घाट चौपाल?
कहाँ गई सहभागिता, कहाँ फकीरा चाल।। 

सौदा  है  शादी  नही, जहाँ  अर्थ  का  बोल।
भौतिक दुनिया कर रही, दीन-हीन का तोल।।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos