आता है याद मुझको
मेरा गाँव रे,
ज़िंदगी ने खेला मुझसे,
कैसा दाँव रे।
ओ सजन साँवरे!
याद आते मुझको,
वे गूलर के पेड़,
देखो वे खिरनीं जातीं,
अरे! छेड़ छेड़।
हूक उठा जाती,
वन खंडी छाँव रे!
ओ सजन...
तपती दोपहरी मुझे,
बुलाए इमली,
दूर से पुकार जाती,
मुझको मंडली।
अम्मा पुकारे,
जाता कौन ठाँव रे!
ओ सजन...
कुंड तैराकियाँ,
होतीं अधीर,
लोग तैर जाते,
इस उस तीर।
भैया भाभी हैं
मेरे कैसे भाँव रे!
ओ सजन...
रात को होती थीं,
रामलीला,
झूले हिंडोले से
सावन सजीला।
दौड़ जाते देखने,
बीच गाँव रे!
ओ सजन...
नीम के पेड़ों पर,
झूले डाल-डाल,
झूलतीं एक संग
सखी चार-चार।
गीत गातीं भाभियाँ,
रचे पाँव रे!
ओ सजन...
आई है चिट्ठी,
पहले प्रहर,
लाएगी भाभी
मेरे शहर।
बोल रहा छत पर,
कौवा काँव रे!
ओ सजन...
डॉ. देवेन्द्र शर्मा - अलवर (राजस्थान)