संदेश
कविताएँ जन्म लेती है - कविता - इमरान खान
स्वाभाविक है उन शब्दों का विकसित होना जिसके मूल में कविताएँ जन्म लेती है, कविता जीवन है या जीवन कविता है, जिसके अन्तस में कवि ख़ुद को …
वह अपना-सा - कहानी - अनुराग उपाध्याय
वैसे तो शिमला की घाटी, वहाँ की वादी, वहाँ का गायन, वहाँ की सुंदरता आदि न केवल भारत में अपितु संसार भर में चर्चित और लोकप्रिय है। लेकिन…
कलम का पुजारी - कविता - रमाकांत सोनी
नज़र उठाकर देखो ज़रा, पहचान लीजिए। कलम का पुजारी हूँ, ज़रा ध्यान दीजिए। शब्दों की माला लेकर, भाव मोती पिरोता हूँ। काग़ज़ कलम लेकर, मैं सप…
हम लेखक हैं जनाब - कविता - दीक्षा
काश! लोग समझ पाते काश! एक लेखक की ज़िंदगी से रू-ब-रू हो पाते, वो कैसे लिखता है वो ही जानता है घंटो बैठकर लिखने के लिए बस चाँद को निहारत…
क़लम - कविता - संजय परगाँई
कभी अतीत की यादें, तो कभी भविष्य की बातें, कभी टूटे दिलों के हाल, तो कभी मोह मायाजाल, कभी अधूरी सी कहानी, तो कभी अजीब सुनसानी, कभी ज़मा…
क़लमकार - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कविता में क्या लिखोगे कवि? शृंगार, सौंदर्य के गीत कामिनी कंचन के आर्वत– नहीं नहीं लिखो– शहीदों का बलिदान भ्रष्टाचार का उन्मूलन दहेज कन…
अब आया समझ में - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
अब आया समझ में कि कवि कैसे बन जाते हैं, मन की पीड़ा हृदय तक जब हिलोर लेती है तब कवि बन जाते है। तुम ही तो हो समाज के असल पथ प्रदर्श…
बंद लिफ़ाफ़ों में - कविता - अमृत 'शिवोहम्'
मौत से पहले कोई ज़मीन ख़रीदेगा, आने वाली पीढ़ियों के लिए, दे जाएगा अपनी औलादों को, ख़ुद से महँगा सोना चाँदी, ज़मीन जायदाद और न जाने क्या-क…
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन? - कविता - सौरभ तिवारी
मैं मन का कोलाहल लिख दूँ या लिखूँ गूँजता अन्तर मौन लिखने को हर आह भी लिख दूँ मेरा लिखा पढ़ेगा कौन? रोम-रोम की लिखूँ वेदना संवेदी शीतल …
ऐसा गीत लिखूँ - कविता - अजय कुमार 'अजेय'
संवेदना मन गागर भावना मन सागर शब्दों की सुंदरता से मैं मन की प्रीत लिखूँ। कुछ ऐसा गीत लिखूँ।। सावन के आने पर बदरी छा जाने पर बागों में…
कविताएँ सब कुछ कहती हैं - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
अनुराग बिखेरे फिरती हैं, कविताएँ सब कुछ कहती हैं। निर्झर बन करके बहती हैं, कविताएँ सब कुछ कहती हैं। प्रिय ग्रन्थों के अध्यायों में, बन…
माखनलाल चतुर्वेदी - कविता - राघवेंद्र सिंह
हुई प्रफुल्लित भारत धरिणी, काव्य रत्न का जन्म हुआ। हिन्दी का उपवन है महका, स्वयं पुष्प का जन्म हुआ। त्याग तपस्या के अनुयायी, काव्य में…
आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ - कविता - विनय विश्वा
मैं कविता लिखता हूँ इसलिए लोग कहते हैं कवि हूँ पर, मैं एक आदमी हूँ आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ जहाँ पर्त खोलने की कोशिशें होती हैं इ…
गीत सजाने आया हूँ - कविता - राघवेंद्र सिंह
मैं कवियों की स्मृतियों का, गीत सजाने आया हूँ। काव्य के इस सुंदर उपवन में, दीप जलाने आया हूँ। मैं अदना सा एक बालक हूँ, अभी अभी निकली त…
आज मैं कुछ लिखना चाहता हूँ - कविता - शेख रहमत अली 'बस्तवी'
लिखते हैं सब, आज मैं भी कुछ लिखना चाहता हूँ। गूगल हो या अमेज़ॉन हर जगह बिकना चाहता हूँ। अदाकारी भी हो मुझमें व जुनूँन इस तरह का हो,…
कविता के संग लिखा जाऊँ - कविता - सिद्धार्थ 'सोहम'
हूँ नहीं चाहता कुछ भी जग से, न माँगू मै वरदान अमर, ना बनना चाहूँ धनवान प्रखर, बस कविता की ही ओज मिले, कविता से ही पहचान मिले जब लिख…
कुमार विश्वास - कविता - राघवेंद्र सिंह
हिन्दी साहित्य पुरोधा, सरस्वती पुत्र, जीवन को काव्य साधना में समर्पित करने वाले कविराज डॉ॰ कुमार विश्वास जी के जन्मदिवस पर उन्हें समर्…
खोटा कवि हूँ मैं - कविता - गणेश भारद्वाज
मैं कोई फ़नकार नहीं हूँ, औरों की सरकार नहीं हूँ। लिख देता हूँ मन की पीड़ा बेदर्द कलमकार नहीं हूँ। पन्ने और सजाते होंगे, कलमी हार बना…
क्या तुमने कवि को देखा है? - कविता - राघवेंद्र सिंह
पूछ रहा है एक कवि, क्या तुमने कवि को देखा है? ऊपर से नीचे तक कैसा, क्या रवि के जैसी रेखा है? क्या है उसके हाथों में, क्या दुबला पतला द…
उठे जब भी कलम - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम'
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे, प्रभाव जिसका इस समाज में दिखे। कलम वह हथियार है जो वार तेज़ करती है, किसी गोले किसी बारूद से नहीं डरती है, …