हूँ नहीं चाहता कुछ भी जग से,
न माँगू मै वरदान अमर,
ना बनना चाहूँ धनवान प्रखर,
बस कविता की ही ओज मिले,
कविता से ही पहचान मिले
जब लिखूँ हमेशा सत्य लिखूँ,
झूठ पर मेरी क़लम हिले,
जीवन का परिवेश लिखूँ,
मानव का सर्वेश लिखूँ,
प्रेम का ही संदेश लिखूँ,
नफ़रत का न आवेश लिखूँ
कुछ लिखना हो ख़ुद से पहले,
सबसे पहले ये देश लिखूँ।
बस यही तमन्ना बाक़ी है, कविता में नाम कमा जाऊँ,
संत्रास कभी इस जीवन का, मै जब भी कभी पढ़ा जाऊँ,
और याद करे जब भी कोई,
बस कविता के संग लिखा जाऊँ।
कविता के संग लिखा जाऊँ।।
सिद्धार्थ 'सोहम' - उन्नाओ (उत्तर प्रदेश)