उठे जब भी कलम - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम'

उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे,
प्रभाव जिसका इस समाज में दिखे।

कलम वह हथियार है जो वार तेज़ करती है,
किसी गोले किसी बारूद से नहीं डरती है,
समाज में परिवर्तन का हौसला रखती है।
तुम भी लिखो वह सब झलक जिसकी दिखे,
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे।

लिखो तुम प्रहार जो प्रकृति पर रोज़ होते हैं,
लिखो जो अत्यचार नारियों पर सदा होते हैं।
भ्रष्टाचार हर तरफ़ फलीभूत है वह भी दिखे,
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे।
समाज में घृणित काज नित हो रहे,
बच्चों के सामने देखो बूढ़े रो रहे,
लिखो कुछ आईना जो सबको दिखे,
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)

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