माखनलाल चतुर्वेदी - कविता - राघवेंद्र सिंह

हुई प्रफुल्लित भारत धरिणी,
काव्य रत्न का जन्म हुआ।
हिन्दी का उपवन है महका,
स्वयं पुष्प का जन्म हुआ।

त्याग तपस्या के अनुयायी,
काव्य में दिखता है उद्घोष।
कलम लेखनी चल पड़ती है,
आवाह्न का लेकर घोष।

सरल, ओज के बनकर पर्वत,
अडिग रहे वो अपने पथ पर।
देशप्रेम के सच्चे नायक,
सदा चढ़े काव्य के रथ पर।

लिखा उन्होंने अमर राष्ट्र और,
लिखी पुष्प की अभिलाषा।
ऊषा के संग पहिन अरुणिमा,
लिखी सदा जीवंत भाषा।

झरे पुष्प की लिखी पंखुड़ी,
संध्या के दो बोल लिखे।
काव्य कलेवर राष्ट्र प्रेम के,
शब्द बड़े अनमोल लिखे।

कहलाए वे भारतीय आत्मा,
बने काव्य की अद्भुत नाव।
काव्य साधना में मिलता है,
सदा समर्पण का वह भाव।

नहीं स्वीकरण पद मुख्यमंत्री,
काव्य साधना के आगे ही।
कहा उसे साहित्य अवनति,
यदि झुके वो पद आगे ही।

हिन्दी के उस सकल व्योम पर,
दीप्तिमान है एक वेदी।
माँ हिन्दी के सच्चे सेवक
माखन लाल चतुर्वेदी।

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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