मेरा लिखा पढ़ेगा कौन? - कविता - सौरभ तिवारी

मैं मन का कोलाहल लिख दूँ
या लिखूँ गूँजता अन्तर मौन
लिखने को हर आह भी लिख दूँ
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन? 

रोम-रोम की लिखूँ वेदना
संवेदी शीतल गान लिखूँ
यदि लिखने पर आ जाऊँ
तो, टूटे सब अरमान लिखूँ
जागी हर इक रात लिखूँ तो
मेरे स्वप्न गढ़ेगा कौन?
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन?

बिखरी-बिखरी लिखूँ तमन्ना
जीवन के कटु ताप लिखूँ
अपने हाथों सिले जो मैंने
दिल के सारे चाक लिखूँ
नीर क्षीर दोनों लिख दूँगा
उनको पृथक करेगा कौन?
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन?

हर्फ़-हर्फ़ में सिसकी लिख दूँ
अचल अटल विश्वास लिखूँ
क़दम-क़दम पर किया जिन्होंने
उनका हर उपहास लिखूँ
तन्जों के जो दंश नुकीले
दिल मे चुभे चुनेगा कौन?
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन?

अपने मन की निर्मलता के
सारे साक्ष्य लिखूँगा मैं
दर्पन जैसे परम् सत्य सी
सारी बात लिखूँगा मैं
मेरे पावन आलेखों को
अंगीकार करेगा कौन?
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन?

जिसने चाहा उसके जैसा
हाँ बिल्कुल ढल सकता हूँ
जिस पथ पर तुम चलने निकले
ख़ुशी-ख़ुशी चल सकता हूँ
मैं मूरत सा ढल जाऊँ
पर मेरे साथ ढलेगा कौन?
मेरा लिखा पढ़ेगा कौन?

सौरभ तिवारी - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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