संवेदना मन गागर
भावना मन सागर
शब्दों की सुंदरता से
मैं मन की प्रीत लिखूँ।
कुछ ऐसा गीत लिखूँ।।
सावन के आने पर
बदरी छा जाने पर
बागों में कोयल कूके
डाल-डाल फुदके
पपीहा का संगीत बनूँ।
कुछ ऐसा गीत लिखूँ।।
खेतों में अन्न-अन्न कर दूँ
घर-घर धन-धान्य भर दूँ
भूखे का पेट भरूँ
प्यासे का नीर बनूँ
मैं करुणा मन में वो दूँ।
कुछ ऐसा गीत लिखूँ।।
घावों का मरहम बन
घायल की पीर हरूँ
लज्जा को ढकने का
पाकीज़ा चीर बनूँ
कुछ ऐसा गीत लिखूँ।
मैं सबका मीत बनूँ।।
अजय कुमार 'अजेय' - जलेसर (उत्तर प्रदेश)