संदेश
कृष्ण तुम पर क्या लिखूँ - कविता - सुशील शर्मा
कृष्ण, तुम्हें शब्दों में बाँधना वैसा ही है जैसे आकाश को हथेली में भरने की कोशिश, जैसे सागर को प्यास की परिभाषा में समेटना, जैसे प्रका…
मैं भारत हूँ - कविता - संतोष कुमार
मैं बस एक राष्ट्र नहीं एक संकल्प हूँ प्रयास हूँ आज़ादी का एहसास हूँ कर्तव्यों का ताला भी हूँ अधिकारों की चाभी भी कुछ पुराने ज्ञान सरीखा…
स्वतंत्रता दिवस - कविता - आलोक कौशिक
विजय-ध्वजा समुन्नत भारत नभ में झलके त्रिवर्ण-शान वीर-प्रवीर अमर बलिदानी जिनसे जग में बढ़ी पहचान वज्र-संकल्प-धार सज्जित रण-ध्वनि जिनके …
आया पावन रक्षाबंधन - कविता - सत्यम् दुबे 'शार्दूल'
श्रावणी पूर्णिमा का विहान, है सजी मिठाई की दुकान। राखी में कितने रंग भरे, सब को आकर्षित आप करे। बहनों के हाथों भाई का होना है नूतन अभि…
रक्षाबंधन - कविता - संजय राजभर 'समित'
भाई बहन का प्यार, चंदा सूरज के जैसा हो बहन की शीतलता के लिए भाई की सुरक्षा कवच हो, अनुज के लिए बहन का माँ के जैसा ममत्व हो उपहार का लो…
हिन्द का कोहिनूर - कविता - गणपत लाल उदय
हे वीर शहीदों! है आपको कोटि-कोटि प्रणाम, अतुलित बल से खदेड़े आपने दुश्मन तमाम। अमर ज्योत जलती रहेगी आपके सवेरे शाम, मुस्तेद सदा रहकर आ…
मानव तू परोपकारी बन - कविता - डॉ॰ सुनीता सिंह
मानव तू परोपकारी बन, दीन दुखियों का हितकारी बन, तेरे पास है बुद्धि अनमोल, इसका नहीं है कोई मोल। सभी जीवों से अलग है तू, सारी रचना से व…
काश! - कविता - प्रवीन 'पथिक'
बहुत दिन हुए उनसे मिले हुए, देखा नहीं बहुत दिनों से। बात तो फाल्गुन के पहले बयार से ही शुरू हुई थी। मिले, आषाढ़ के पहली बारिश में। भीग…
स्वराज के अग्रदूत: लोकमान्य तिलक - कविता - रतन कुमार अगरवाला
जब युग बंधा था पराधीनता के हथकंडो से, जब देश था जकड़ा फ़िरंगी के पाखंडों से। तब उठे थे तुम, एक ज्वालामुखी बनकर, संघर्ष के रण में, अनल त…
शिवार्पण: सावन की प्रेमगाथा - कविता - आलोक कौशिक
बरखा की रुनझुन में जलते हैं दीप शिवोभाव के मन के अंतरतम तल में कुछ स्वर गूँजे सुभाव के नीलाकाश लहराता बन जटा-जूट की धारा पावन सावन उतर…
स्मृति के झूंडों में - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
किसी ठिकाने का नहीं, बरबस आँखें छलक पड़ी। बादल घने थे हृदय पर, बूँदे पलकों से ढलक पड़ी। होश में कब था, और न होने की आशा, बूँदों में अन…
जंगल के पेड़ - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
जंगल में लगे हुए हरे-भरे, समृद्ध पेड़ों को काटने के लिए आया लकड़हारा, लेकिन हुआ यूँ कि— पेड़ों ने दिखाई एकता और उस लकड़हारे के विरुद्घ…
शब्द - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैं शब्द हूँ दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, योग का संचयन और व्यक्त करने का माध्यम हूँ। जहाँ-जहाँ जिस समूह ने जिस-जिस रूप में रेखांकित किया वहा…
तीज - कविता - अभी झुंझुनूं
हरी चूड़ियों की खनक में, सौगंध है सावन की, मेहँदी रचे हाथों में, तस्वीर है सावन की। पिया मिलन की आस लिए, नयन सजाए नारी है, हरियाली तीज…
जीवन एक पुस्तक - कविता - अजय कुमार 'अजेय'
जीवन अनुभव की किताब जिसमें कुछ रचनाऍं। सुख दुःख की रची इबारत शीर्षक विरत कथाऍं। जीवन में शीतलता लाती भोर हवा रवानी, पूर्वी विछोभ से उठ…
तू मेरी अन्तर्नाद बनी - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
तू सुरभित पुष्पों-सी कोमल, मैं तेरा मधुमास बना। तू जलती दीपक की लौ-सी, मैं उसका विश्वास बना। तू सागर की शांत लहर-सी, मैं उसका उल्लास ब…
रात: भावनाओं का विराट ग्रंथ - कविता - प्रेम चेतना
यह रात भी कितनी रहस्यमयी है... ना जाने कितने अनकहे जज़्बात, कितनी बेनाम कसकें धीरे-धीरे उतरने लगती हैं इस निशाचर नीरवता की गोद में। जब…
सावन की सरगम - कविता - अभी झुंझुनूं
धरती ओढ़े पात गगरी, बदरा करे सिंगार, सावन आई घटा घिरी, बजी मल्हार-पुकार। हर डाली बोले पपीहा, "पिया मिलन को आओ", मनवा डोले जै…
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