संदेश
पेड़ की महानता - कविता - राजेश राजभर
पेड़ किसी का मित्र नहीं होता परंतु "मित्र" पेड़ जैसा नहीं होता! मित्रता की मिठास– पेड़ अन्तिम साँस तक देता है, एक पेड़ ही त…
मौन में प्रेम की वाणी हो तुम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जब नयन मौन होकर पुकारें तुम्हें, उन दृगों की कहानी हो तुम। छाँव बनकर मेरे पथ में चलो, इस धरा की रवानी हो तुम। शब्द बिन भी समझ लो हृदय …
शून्यगामी - कविता - रविना बर्त्वाल
हर कोई अपने विकल्पों का निर्धारण करता है कल्प अकल्प के मध्य विकल्प चुन ना मेरे मन को राज़ी नहीं। मैं स्वयं बुन ना चाहती हूँ राह अपनी प…
योद्धा - कविता - निखिल पाण्डेय श्रावण्य
दृग् ग़िलाफ़ करो तुम ग़ौर से देखो हैं कितने युद्ध लड़े हुए। मृत्यु हैं कितनी बार डराई फिर भी डटकर खड़े हुए॥ डर भी भयभीत है हमसे ज़रा निकट …
पेड़ के साथ चली गई आत्मा - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
गर्मी का दिन था एक बूढ़ा आदमी झोपड़ी में अकेला रहता था रोज़ दिनभर की मेहनत के बाद वह घर के सामने वाले पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम करता…
संघर्ष - कविता - मदन लाल राज
जीवन बहुत कठिन है, हम जवान बच्चों को अब बुढ़ापे में समझाते हैं। पर क्या फ़ायदा! बचपन में हम ही उन्हें आत्मनिर्भर होने से बचाते हैं। अण्…
योग - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
योग ही से जीवनी है योग ही देता सहारा। प्रात उठ कर श्वास खींचो और फिर बाहर निकालो। करो प्रणायाम प्रतिदिन नियम यह अविरल बनालो। आयुष्य लम…
अकेले रहे तो समझ आया - कविता - नाजिया
अकेले रहे तो समझ आया, सब कुछ तो था, बस कोई अपना नहीं था। ख़ामोशी ने दर्द का राज़ बताया, और तन्हाई ने ख़ुद से मिलवाया। टूटे ख़्वाब भी रास…
तुम लौटी तो, पर यूँ लौटना नहीं था - कविता - अदिति
मैं तन्हा था… लेकिन ख़ुश था — क्योंकि तुम्हारे लौटने की उम्मीद मेरे पास ज़िंदा थी। इंतेज़ार एक इबादत बन चुका था हर पल, हर घड़ी तुम्हारा…
हिंदी का लेखक - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
हिंदी के लेखक कभी सही समय पर नहीं बोलते। वे तब चुप रहते हैं, जब एक पूरी जाति को उजाड़ा जा रहा होता है, जब संविधान की पीठ पर सत्ता अपनी…
मेरा अनुपात - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
मेरा अनुपात, तुमसे, सामंजस्य नहीं बिठा पाता। राहत की बात है, कोई शून्य नहीं हो पाता। बिखरी हुई सोच, और उनमें बिखरा व्यक्तित्व, अपने वि…
जो पहले था आज नहीं है - कविता - बिंदेश कुमार झा
आसमान आज भी बरस रहा है, कल पानी बरसा रहा था, आज आग है। आसमान भी काला है, चंद्रमा भी सफ़ेद चादर ओढ़ा होगा, आज उसमें भी दाग़ है। धरती का र…
अधूरे शब्द - कविता - प्रवीन 'पथिक'
धुंधलका होते ही बनने लगती विरह की कविताएँ एक छवि तैर जाती है ऑंखों में दिनभर की बेचैनी, आक्रोश, तपन केंद्रित हो जाती है– उस विरही कवित…
पिता: एक अनकहा संवाद - कविता - सुशील शर्मा
पिता कोई शब्द नहीं है, न ही कोई सम्बन्ध भर। वह तो एक अनदेखा प्रतिबिम्ब है जिसे हम तभी पहचानते हैं जब वह ओझल हो जाता है। वह जन्म नहीं …
अंतिम यात्रा - कविता - राजेश राजभर
आत्मा अविजित अमर है– सर्वविदित है नश्वर काया! अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये, मैं कहाँ इसे झूठलाया! बंधन मुक्त नहीं थे मुझसे…
जाल - कविता - मदन लाल राज
मकड़ी सिद्धहस्त है, ख़ुद जाल बनाने में। फिर तरकीब लगाती है, शिकार को फँसाने में। अपने रसायन से वो बेतोड़ जाल बुनती है। पकड़ने को कीड़े…
तू ज़िंदा है! - कविता - संजय राजभर 'समित'
उठ चल! और लड़ गर साँस लेता हुआ तू ज़िंदा है तो याद रख तुझे आगे बढ़ना ही पड़ेगा, गर थक गया है तो माँझी को देख गर अंधा है तो लुइ ब्रेल को…
ख़ुद को ढूँढ़ने की राह - कविता - रूशदा नाज़
हर शख़्स को यादों में रोते देखा है व्यथित होकर ख़ुद को सम्भालतें देखा है ख़ुद से प्यार करने की सलाह सब देते है प्रेम में बिखरने के बाद ये…
सिन्दूर के बदले - कविता - पवन कुमार मीना 'मारुत'
युद्ध यादें दे जाता है कड़वी-कड़वी यादें। ले जाता है साया दुधमुँहें बच्चों के सिर से बाप का। और दे जाता है सिन्दूर के बदले हँसती-मुस्कुर…
कहने को अपने - कविता - सुशील शर्मा
भीड़ में भी क्यों, दिखती है दूरी। अपनों को अपना कहना है भारी। शब्दों के धागे, रिश्तों की माला, पर मन के भीतर, दिखता है हाला। मुश्किल घड़…
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