संदेश
पाँखी - कविता - मयंक द्विवेदी
ओ पिंजड़े के पाँखी तुम क्या जानो ये नील गगन ओ पिंजड़े के पाँखी तुम क्या जानो ये मस्त पवन। तुमने देखा है केवल विवश हुई इन आँखों से तुमन…
यंत्र - कविता - मदन लाल राज
सुबह का होना चिंताओं का समीकरण। फिर शुरू होती है, घटा-गुणा, भाग-दौड़। लगातार गतिशीलता बढ़ाती है दिल की धड़कन। मशीनों की खटखट और धुआँ स…
हुआ क्या? - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
खुली आँख थी या कि तुम सो रहे थे, कहीं उड़ गया था तुम्हारा सुआ क्या? घटना घटी देखकर पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? …
दर्शन की छाया - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
जब एक व्यक्ति धूप में चलते-चलते थक जाता है तो वह फिर एक वृक्ष की छाँव में बैठ जाता है शान्ति और सुख का अनुभव करता है। वह व्यक्ति — तर्…
पता ही नहीं चला - कविता - प्रवीन 'पथिक'
दो दिलों का मिलन, कब साँसों की डोर बन गई? पता ही नहीं चला। जीवन की ख़ुशनुमा शाम, कब सुहावनी रात बन गई? पता ही नहीं चला। उसी शाम तो तुमन…
मझधार - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
मैं प्रेम की कश्ती हूँ, मेरा जीवन मझधार में है! हे प्रिय! तुम माँझी बनो, हमें चलना उस पार है! प्रेम न ठहरे सागर जैसा, कलकल-छलछल बहता र…
रंग न मन मोहा - कविता - गौरव ज्ञान
श्याम का रंग, साम क्यों? बाबरी बन राधा, मीरा से पुछी, मीरा बोली– ना जानु मा साम रंग, ना जानु मा गोरी, मोह तो मीरा हूँ दर्श की प्यासी,…
अंतर्मन की खोज - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
खोज रहा हूँ ख़ुद को भीतर, मौन लहर में गूँज समाई। भाव शिलाएँ चुपचाप खड़ीं, बूँद-बूँद रसधार बहाई॥ अंतःपुर की जाली झाँके, स्मृतियों की धूप…
है नारी हर युग में युग निर्माता - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
ममत्व भाव पाने को जिसका, सदैव आतुर रहे स्वयं विधाता। शील, शक्ति, सौंदर्य समन्विता, है नारी हर युग में युग निर्माता। स्नेह सुधा बरसा कर…
मुझे नहीं चाहिए - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
मेरे पास कुछ भी नहीं है, जहाँ थोड़ी देर बैठ कर सुस्ता सकूँ न ईमानदार पसीने की महक न कोई सार्थक पंक्तियाँ कुछ निरर्थक शब्दों की आवाजाही …
नवयुग की हम नारी - कविता - प्रमोद कुमार
नव प्रभात अब निकल गया है, कटी रात अंधियारी, अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी। कालरात्रि दुर्गा बनकर हमने असुरों को मारा, चामु…
आत्म संवाद - कविता - अंजू बिजारणियां
ये जवानी का दौर, दूसरी ओर सफलता प्राप्ति का शोर। पड़ रहा मुझ पर मेरा ही ज़ोर। अपने आप में रहना भी चाहूँ, निकलना भी चाहूँ, छाया कोहरा चा…
माँ ने पढ़ी दुनिया - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
कभी कभी वो मुझे देर तक निहारती है, माँ मेरी परेशानियाँ पहचानती है। माँ पढ़ती है, मेरी आँखें, मेरा चेहरा और मन, वो जानती है हृदय की उलझ…
प्रसन्नता - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गीत ख़ुशी के गाऍं जा हम, मन प्रसन्नता शहद सुधा है। शिरोवेदना दर्द निवारक, ग़म उदास मन ख़ुशी दवा है। सत्कार्य ध्येय जीवन सहचर, हर्ष सुधारस…
गिद्ध - कविता - मदन लाल राज
गिद्ध, नोंचने में सिद्ध। दूर-दूर तक प्रसिद्ध। आजकल वह भी सोचने लगा है। मुझ से अच्छा तो आदमी नोंचने लगा है। आकाश में अब बेचारा लुप्त प…
जीवन है अनमोल जगत में - कविता - रमेश चन्द्र यादव
जीवन है अनमोल जगत में, संभल कर क़दम उठाना रे। ग़लती कोई हो जाए एकबार, तो उसको ना दोहराना रे। मत सोचो तुम हो अकेले, नहीं कोई है साथ तुम्…
कविता - कविता - रोहित सैनी
कविता मुझे दवाई की तरह मिली सर दर्द हो या पेट दर्द या बुख़ार मैंने इसे गोली की तरह खाया और उलटी की तरह पेश आया हर बार इसके साथ अब जो कु…
देखो! ऐसा है हमारा बिहार - कविता - आलोक कौशिक
सकारात्मक सोच यहाँ की हृदय में करूणा और प्यार संघर्ष का साहस यहाँ पर कभी ना होती हौसलों की हार देखो! ऐसा है हमारा बिहार नयनाभिराम नदिय…
आख़िरी मुलाक़ात - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
इस बार वो गई मगर हर बार की तरह नहीं हर बार चली जाती थी मुझे पीछे छोड़कर मैं देखता रहता था उसे नज़रों से ओझल होने तक एक टूटी उम्मीद लेकर…
उनींदी आँखें - कविता - संजय राजभर 'समित'
चैत्र मास तपती धरा टैंकर का पानी यह कैसी बुद्धिमानी पाउच में पानी! एक तरफ़ मंगल ग्रह पर खोज एक तरफ़ प्रकृति की चेतावनी बार-बार फिर भी ज…
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