संदेश
मेरा गाँव - कविता - दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी'
गीत पिक के, काक के काँव-काँव बट वृक्ष के छाँव, सरसों के पीत पुलकित पुष्प सरिता में विहसित नाव। खेतों में बैलों की जोड़ी मुस्काते खेत-ख…
तुम चाँद की बातें करते हो - कविता - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
तुम चाँद की बातें करते हो, शहरों की सड़के ठीक नहीं, झरने पहाड़ जीव ये जंगल, क्या जीवन का प्रतीक नहीं। काट रहे हो जंगलों को, परिंदे अब …
भगवान बुद्ध - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैं टूटा हुआ हूॅं मानवता के तमाम टुकड़े हैं एक टुकड़ा तू भी उठा ले हर टुकड़ा! कुछ न कुछ कहता है आइना दिखाता है, मैं पारस नहीं हूॅं पर …
मौन का भी अर्थ है - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
मौन का भी अर्थ है। ग़र समझ तुम जाओगे। शब्द से मौन का, निहितार्थ अधिक पाओगे। बात करती है नज़र भी, इनसे भी संवाद हो। चाहते नहीं अधर अब हम…
आया है सावन - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
बादल उड़ते हैं जल लेकर, दो-एक? ना, पूरा दल लेकर। ज्यों पड़ी तप्त भू पर दृष्टि, करते शीतल, करके वृष्टि। लगता है आया पृथ्वी पर— जल, गंगा…
आत्मा से कटे वाई-फ़ाई से जुड़े - कविता - सुशील शर्मा
हम अब एक-दूसरे के पास नहीं रहे, हाथ से हाथ छूटे नहीं, पर छूने की इच्छा मर चुकी है। बगल में बैठा इंसान अब बस एक स्थिति है न ज़िंदा, न म…
तलाश - कविता - प्रेम चेतना
हर जीवन की मौन कथा – तलाश। अशांति की गर्जना में शांति की प्यास, अकेलेपन के वीराने में प्रेम के आस। वेदना की राख में ईश्वर की झलक, और म…
हामर छोटा नागपुर - खोरठा गीत - विनय तिवारी
हामर छोटा नागपुर हामर हीरानागपुर। हीरा मोती सेंताइल यहाँ माटीक तरें भरपूर माटिक तरें भरपूर। हामर छोटा नागपुर हामर हिरानागपुर हामर सोना…
मैं पीले साँप की जात में शामिल हो गया हूँ - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
रात को सोया तो लगा जैसे बिस्तर कोई पुराना जंगल हो उसमें रेंगते हैं मेरे अपने पाप, मेरे ही पसीने से नम हुई घास, और एक पीला साँप — ठीक म…
पेड़ की महानता - कविता - राजेश राजभर
पेड़ किसी का मित्र नहीं होता परंतु "मित्र" पेड़ जैसा नहीं होता! मित्रता की मिठास– पेड़ अन्तिम साँस तक देता है, एक पेड़ ही त…
मौन में प्रेम की वाणी हो तुम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जब नयन मौन होकर पुकारें तुम्हें, उन दृगों की कहानी हो तुम। छाँव बनकर मेरे पथ में चलो, इस धरा की रवानी हो तुम। शब्द बिन भी समझ लो हृदय …
शून्यगामी - कविता - रविना बर्त्वाल
हर कोई अपने विकल्पों का निर्धारण करता है कल्प अकल्प के मध्य विकल्प चुन ना मेरे मन को राज़ी नहीं। मैं स्वयं बुन ना चाहती हूँ राह अपनी प…
योद्धा - कविता - निखिल पाण्डेय श्रावण्य
दृग् ग़िलाफ़ करो तुम ग़ौर से देखो हैं कितने युद्ध लड़े हुए। मृत्यु हैं कितनी बार डराई फिर भी डटकर खड़े हुए॥ डर भी भयभीत है हमसे ज़रा निकट …
पेड़ के साथ चली गई आत्मा - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
गर्मी का दिन था एक बूढ़ा आदमी झोपड़ी में अकेला रहता था रोज़ दिनभर की मेहनत के बाद वह घर के सामने वाले पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम करता…
संघर्ष - कविता - मदन लाल राज
जीवन बहुत कठिन है, हम जवान बच्चों को अब बुढ़ापे में समझाते हैं। पर क्या फ़ायदा! बचपन में हम ही उन्हें आत्मनिर्भर होने से बचाते हैं। अण्…
योग - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
योग ही से जीवनी है योग ही देता सहारा। प्रात उठ कर श्वास खींचो और फिर बाहर निकालो। करो प्रणायाम प्रतिदिन नियम यह अविरल बनालो। आयुष्य लम…
अकेले रहे तो समझ आया - कविता - नाजिया
अकेले रहे तो समझ आया, सब कुछ तो था, बस कोई अपना नहीं था। ख़ामोशी ने दर्द का राज़ बताया, और तन्हाई ने ख़ुद से मिलवाया। टूटे ख़्वाब भी रास…
तुम लौटी तो, पर यूँ लौटना नहीं था - कविता - अदिति
मैं तन्हा था… लेकिन ख़ुश था — क्योंकि तुम्हारे लौटने की उम्मीद मेरे पास ज़िंदा थी। इंतेज़ार एक इबादत बन चुका था हर पल, हर घड़ी तुम्हारा…
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