मानव तू परोपकारी बन - कविता - डॉ॰ सुनीता सिंह

मानव तू परोपकारी बन - कविता - डॉ॰ सुनीता सिंह | Hindi Kavita - Maanav Tu Paropkaari Ban - Dr Sunita Singh
मानव तू परोपकारी बन,
दीन दुखियों का हितकारी बन,
तेरे पास है बुद्धि अनमोल,
इसका नहीं है कोई मोल।

सभी जीवों से अलग है तू,
सारी रचना से विलग है तू,
मन में दया की ज्योति जला,
तू है मानवता में पला।

तू जब जोर लगाएगा,
पर्वत भी ढह जाएगा,
तुझ में गुणों का है भंडार,
तुझ में है धैर्य अपार।

जो बुद्धि नहीं दौड़ता है,
समझ नहीं वह पाता है,
अंधकार में जीता है,
प्रकाश से ओझल रहता है।

चाहे जीवन में अंधियारा हो,
चाहे संकट ने आ घेरा हो,
धैर्य धूरी पर चलता चल,
पथ ना ओझल तेरा हों।

ख़ुद में जगा तू सहनशीलता,
चंद्रमा में जैसी शीतलता,
दिल ना किसी का तू दुखावे,
भूल कभी न होने पावे।

परोपकारी है ऐसी खेती,
जिसमे खिलते स्वर्ग के मोती,
इसको जिसने जान लिया,
मानवता को ठान लिया।

हे मानव तुमसे है प्रार्थना,
दूर करो अपने मन की भर्त्सना, 
स्वच्छ हो जिससे तेरा मन,
मानो तो परोपकारी बन।

डॉ॰ सुनीता सिंह - बस्ती (उत्तर प्रदेश)

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