सावन की सरगम - कविता - अभी झुंझुनूं

सावन की सरगम - कविता - अभी झुंझुनूं | Saawan Kavita - Saawan Ki Sargam - Abhi Jhunjhunu | Hindi Poem On Rain Season. सावन पर कविता
धरती ओढ़े पात गगरी, बदरा करे सिंगार,
सावन आई घटा घिरी, बजी मल्हार-पुकार।
हर डाली बोले पपीहा, "पिया मिलन को आओ",
मनवा डोले जैसे राधा, कान्हा संग रिझाओ।

चम्पा चमेली मुसकाए, बेलें लहराए प्यारी,
कुंज गली में कृष्ण बजे, मुरली अधरों सारी।
कोयल की कूक में छुपा, कोई मीठा राज़,
सावन के इस रंग में, प्रेम रचे अंदाज़।

बरखा बूँदों में तुलसी के आँगन महके,
माँ के हाथों का पकवान भी रसरंग में बहके।
बाँसुरी की तान पे झूमे मोर नाचते जाएँ,
छोटे-छोटे गाँव गली में गीत कजरी गाएँ।

चौपालों में हँसी, चूड़ी की छनछन,
गागरों में भर लाई बूँदें बनके सावन।
भोलेनाथ का अभिषेक हो, बेलपत्र चढ़ाए,
भक्त हर्ष से गा उठे — "हर हर महादेव" पुकारे।

सावन है — ये रुत नहीं, इक भावों की गाथा,
प्रेम, भक्ति, प्रकृति, लोक — सबकी ये परिभाषा।
हरियाली इसका आँचल है, और घटा है शृंगार,
सावन में ख़ुद ब्रह्म भी गाएँ, प्रेमों का विस्तार।

अभी झुंझुनूं - झुंझुनूं (राजस्थान)

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