स्वतंत्रता दिवस - कविता - आलोक कौशिक
गुरुवार, अगस्त 14, 2025
विजय-ध्वजा समुन्नत भारत
नभ में झलके त्रिवर्ण-शान
वीर-प्रवीर अमर बलिदानी
जिनसे जग में बढ़ी पहचान
वज्र-संकल्प-धार सज्जित
रण-ध्वनि जिनके ओष्ठों पर
धर्म-दीप प्रज्वलित किए जो
संकट-काल के मोर्चों पर
त्याग-तपस्या-अग्नि-ज्वाला से
वीरों ने कर दिया बलिदान
स्वराज्य-सिद्धि के यत्नों में
किया उन्होंने प्राण-दान
आज उनकी स्मृति मनाएँ
ऋण-मुक्ति का कर लें प्रण
अधिकार-रत्न सुरक्षित रख
सजग रहें हम क्षण-क्षण
स्वर्ण-रश्मि सी दमक रही है
विश्व वंदिता भारत की धरा
वीर-रक्त से सिंचित वसुधा
हृदय में करुणा व प्रेम भरा
जाति-भेद, अन्याय, दमन का
कर देंगे सर्वथा परिहार
सत्य, न्याय, करुणा, समता से
भर देंगे नव-जीवन-संसार
जय हो भारत-भूमि महान्
जय हो वीर-समाज अमर
जय हो बलिदान-गाथा की
जय-जय मातृ-ध्वज सुंदर
स्वतंत्रता का यह पावन पर्व
हो नित्य हमारे जीवन में
दीपित रहे स्वाधीन-ज्योति
प्रत्येक हृदय, प्रत्येक मन में
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