मैं भारत हूँ - कविता - संतोष कुमार
गुरुवार, अगस्त 14, 2025
मैं बस एक राष्ट्र नहीं
एक संकल्प हूँ प्रयास हूँ
आज़ादी का एहसास हूँ
कर्तव्यों का ताला भी हूँ
अधिकारों की चाभी भी
कुछ पुराने ज्ञान सरीखा
कुछ बातें इंक़लाबी भी
आज़ाद हिंद के आसमान
को छूती हुई इमारत हूँ
मैं भारत हूँ।
इतिहास में जो छुपा-सा था
काग़ज़ों में दबा-सा था
उसे घुप अंधेरे से
फिर से प्रकाश में लाना है
जिससे हमको आस मिले
जिससे हमको विश्वास मिले
जिस भारत पर गर्व हो सबको
उससे हमे मिलाना है
लाखों करोड़ों सालो की
जो संस्कृति का सार है
पूरे विश्व को जो समेटे
ऐसा बड़ा परिवार है
सभ्यता में जो भी महान
सुसंस्कृत है सराहनीय है
गर्व से आज हम कहते है
कि हम भारतीय है।
हज़ारों सालो की सभ्यता हमारी,
लाखों सालों का इतिहास है
करोड़ों सालो से भूगोल बना
और अरबों का परिवार है
ये धरती और इसमें जो लोग बसते है
साथ रोते है साथ हँसते है
इस देश की सभ्यता को
अपने दिल में बसाते है
इसीलिए तो बड़े गर्व से ख़ुद को
हम भारतीय कहलाते है।
हमको भारतीय होने पर गर्व क्यों है?
क्योंकि इसकी सभ्यता बहुत पुरानी है
क्योंकि हमने दादी नानी से
देश की सुनी कहानी है,
क्योंकि ये देश मेरी माँ
और मैं इसकी संतान
और क्योंकि मुझे भारत की संस्कृति
और इतिहास पर ही अभिमान
जिस देश में मैं पैदा हुआ
उसके लिए कर्तव्य तो बनता है
और हर भारतीय के भीतर
एक छोटा-सा भारत रहता है
स्वर्णिम काल की स्वर्णिम कलम से
लिखी हुई इबारत हूँ
मैं भारत हूँ।
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