रात: भावनाओं का विराट ग्रंथ - कविता - प्रेम चेतना

रात: भावनाओं का विराट ग्रंथ - कविता - प्रेम चेतना | Hindi Kavita - Raat Bhavnaaon Ka Viraat Granth - Prem Chetana. रात पर कविता
यह रात भी कितनी रहस्यमयी है...
ना जाने कितने अनकहे जज़्बात, कितनी बेनाम कसकें
धीरे-धीरे उतरने लगती हैं इस निशाचर नीरवता की गोद में।

जब चाँदनी अपने शबनमी आँचल को फैला
आसमान के आग़ोश में समेटती है,
तो महबूब की आँखों में डूबती यह रात,
हर साँस को उसकी यादों से महका देती है।

पर जब अमावस अपनी काली चुनर ओढ़ आती है,
तो यही रात बन जाती है विरह की जलती चिता —
हर क्षण तड़पाती, हर लम्हा रुलाती।

चंद्रमा के घटते-बढ़ते चक्र के संग-संग
यह रात भी जज़्बातों का जुआ खेलती है —
कभी स्मृतियों की टीस, कभी उत्तरदायित्वों की चुप चीख़,
तो कभी जीवन की अनकही चोटों में डूबा सन्नाटा।

यह रात — एक मौन साक्षी है न जाने कितनी अधूरी प्रेम गाथाओं की,
टूटे दिलों के चिर परिचित आर्त्तनाद की।
कभी किसी माँ की छाती से लग कर बिखरते आँसुओं की कहानी,
तो कभी एक योगी की आत्मा में उठती तप की ज्वाला।

यह रात मात्र एक अंधकार नहीं —
यह तो एक विराट ग्रंथ है —
जिसके हर पृष्ठ पर लिखी है
मनुष्यता की सबसे गूढ़, सबसे सच्ची अनुभूतियाँ।

प्रेम चेतना - पिंजौर, पंचकूला (हरियाणा)

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